न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अदालत ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार को कर्मचारियों के मेडिकल प्रतिपूर्ति बिलों का भुगतान तीन माह में सुनिश्चित रूप से करने निर्देश भी दिए। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को जीवनरक्षक दवाएं निशुल्क उपलब्ध करवाने के आदेश दिए हैं। हल्द्वानी निवासी दीपा पंत ने करीब चार साल पहले हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि शिक्षा विभाग में बतौर गणित के एलटी अध्यापक तैनात रहे उनके पति दिनेश चंद्र पंत को साल 2010 में दिल की बीमारी हो गई थी।
बिल भुगतान करने की जगह चक्कर कटवाता रहा विभाग
एसटीएच से रेफर होने पर राम मूर्ति मेडिकल कॉलेज बरेली में उनका इलाज चला था। इस दौरान दिनेश चंद्र पंत 31 अगस्त से 6 सितंबर 2010 तक अस्पताल में भर्ती रहे। इस दौरान उनका ऑपरेशन भी हुआ था, लेकिन 13 जुलाई 2011 को उनकी मौत हो गई। इसके बाद दीपा पंत ने पति के मेडिकल बिलों के भुगतान के लिए शिक्षा विभाग में अर्जी लगाई। मगर विभाग बिल भुगतान करने की जगह उन्हें चक्कर कटवाता रहा। याचिका में आरोप लगाया गया कि विभाग के एडिशनल डायरेक्टर ने बिल में कटौती करते हुए 3 लाख 22 हजार 314 रुपये का बिल 2 लाख 54 हजार 83 रुपये कर दिया। करीब चार साल तक लंबी भागदौड़ के बावजूद भुगतान न होने पर साल 2015 में दीपा ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को छह सप्ताह में 2 लाख 54 हजार 83 रुपये का भुगतान 12 प्रतिशत ब्याज समेत करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने सरकार को तीन साल के अंदर कर्मचारियों के मेडिकल बिलों का भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया। अदालत ने सरकार को कैंसर, दिल आदि बीमारियों के लिए जीवन रक्षक दवाएं मुफ्त में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।
हर नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकारकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हर नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकार है। यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को उपयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएं। कोर्ट ने कहा कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह जीवन रक्षक दवाएं मुफ्त में उपलब्ध कराए। किसी भी व्यक्ति को दवाओं के अभाव में मरने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।