देहरादून
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए। प्रदेश और केंद्र सरकार पर आक्रामक हो रखे रावत की तुकबंदी तो यही बताती है कि वो कवि हो गए। हालांकि रावत खुद को न तो कवि और न ही कवि हृदय मानते हैं. वो तो विशुद्ध रूप से राजनीतिक हैं।
- खोलो लाल अब आंखें खोलो, दिल के साथ कुछ दिमाग को भी टटोलो।
- 3.5 साल यूं ही बीत गए, तीज त्योहार सब आए और चले गए
- पर अच्छे दिन और दूर भए, मन की बात कहते कहते भैया भूूल गए
- जनधन के खाते सब सूखे रह गए, ना आमदनी दुगनी हुई ना महंगाई कम हुई
- कर्ज माफ नहीं हुा यूं ही मर गए, फिर भी वो मन की बात कहते चले गए
- डबल इंजन दिया, 20 हजार पद खाली, फिर भी नौकरी को तरसते रह गए
- अब तो भैया नौकरी का दरवाजा खोलो, कभी भी युवाओं की मन की बात बोलो
- उठो भैया दिल का दरवाजा खोलो, वक्त बीत रहा,
- मन की आंखें खोलो, अब तो नौकरी का दरवाजा खोला
रावत केंद्र सरकार की ओर इशारा करते हुए ट्विट करते हैं- पिछले चार साल से अपना गला फाड़ रहे नौजवानों की उपेक्षा हो रही है। नौजवानों के लिए नौकरियों के अवसर घट रहे हैं, मैं चिंतित हूं, व्यथित हूं।
यह मोदी नाद क्या है…
मोदी नाद क्या है, यह तो उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही बताएंगे। इन दिनों सोशल मीडिया पर केंद्र और राज्य सरकार पर आक्रामक पूर्व सीएम रावत ने राज्य सरकार पर एक और टिप्पणी की है, कि राज्य सरकार उत्तराखंड सरकार ढोल से मोदी नाद निकालना चाहती है और यह उत्तराखंड की जनता का नहीं बल्कि हमारी महान ढोल परंपरा का भी अपमान होगा।
ढोल से देवनाद निकलता हैः रावतः रावत ने ट्विट किया कि राज्य सरकार ढोल पर फोकस कर रही है यह अच्छी बात है और उम्मीद है कि उनके कार्यकाल में स्वीकृत जागर महाविद्यालय जल्द ही अस्तित्व में आएगा।कहा कि ढोल से देवनाद निकलता है, इसलिए ढोल देवताओं का वाद्य है, लेकिन राज्य सरकार इससे मोदी नाद निकालना चाहती है। देवता की मनुष्य से तुलना नहीं की जा सकती। चाहे वो कितना ही श्रेष्ठ क्यों ना हो।