Gandhi Jayanti 2021 : जब महात्मा गांधी ने जुड़वा दिऐ थे दुश्मनों से हाथ, पढ़ें यह दिलचस्प कहानी | Nation One
देशभर में हर साल की तरह इस साल भी आज 152वीं गांधी जयंती मनाई जा रही है। गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के दम पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
उनके अहिंसा के सिद्धांत को पूरी दुनिया ने सलाम किया, यही वजह है कि पूरा विश्व आज का दिन अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर भी मनाता है। महात्मा गांधी के विचार हमेशा से न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन करते आए हैं।
क्या कहलाए जाते थे महात्मा गांधी?
बता दें कि महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और ‘राष्ट्रपिता’ माना जाता है। महात्मा गांधी को बापू के नाम से भी जाना जाता है।
महात्मा गांधी सादा जीवन उच्च विचार को मानने वाले व्यक्ति थे। उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें लोग महात्मा करकर पुकारते थे।
महात्मा गांधी की पढ़ाई
महात्मा गांधी ने लंदन में कानून की पढ़ाई की थी। लंदन से बैरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद 1893 में गांधी जी गुजराती व्यापारी शेख अब्दुल्ला के वकील के तौर पर काम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए। बता दें कि गांधी जी रस्किन बॉण्ड और लियो टॉलस्टाय की शिक्षा से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में टॉलस्टाय फार्म की भी स्थापना की थी।
कैसे हआ सत्याग्रह का जन्म?
1906 में टांसवाल सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय जनता के लिए विशेष रूप से अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। भारतीयों ने सितंबर 1906 में जोहेन्सबर्ग में गांधी के नेतृत्व में एक विरोध जनसभा का आयोजन किया और इस अध्यादेश के उल्लंघन तथा इसके परिणामस्वरूप दंड भुगतने की शपथ ली। इस प्रकार सत्याग्रह का जन्म हुआ, जो वेदना पहुंचाने के बजाए उन्हें झेलने, और बिना हिंसा किए उससे लड़ने की नई तकनीक थी।
बता दें कि दक्षिण अफीका में सात वर्ष से अधिक समय तक संघर्ष चला। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन गांधी के नेतृत्व में भारतीय समुदाय ने अपने शक्तिशाली प्रतिपक्षियों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। केवल इतना ही नही सैकड़ों भारतीयों ने अपने स्वाभिमान को चोट पहुंचाने वाले इस कानून के सामने झुकने के बजाय स्वतंत्रता की बलि चढ़ाना ज्यादा पसंद किया।
सत्याग्रह आश्रम की स्थापना
1915 में जब गांधी भारत वापस आए तो उनकी आगवानी के लिए मुंबई के कई प्रमुख कांग्रेसी नेता उनके स्वागत के लिए पहुंचे।
इन नेताओं में गोपाल कृष्ण गोखले भी शामिल थे, जिन्हें गांधी जी अपना राजनीतिक गुरू मानते थे। बता दें कि भारत आने के बाद गांधी ने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
कौन-कौन से आंदोलन लड़े?
अपने जीवन में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। वह हमेशा लोगों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे। जैसे की चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन उनके कुछ प्रमुख आंदोलन ने जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव कमजोर करने में बड़ा रोल अदा किया।
गांधीजी ने भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत जैसी बुराइयों के प्रति लगातार आवाज उठाई। वो चाहते थे कि ऐसा समाज बने जिसमें सभी लोगों को बराबरी का दर्जा हासिल हो क्योंकि सभी को एक ही ईश्वर ने बनाया है। उनमें भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। नारी सशक्तीकरण के लिए भी वह हमेशा प्रयासरत रहे। गांधी जी के इन सारे प्रयासों से भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिल गई।
रौलेट एक्ट सत्याग्रह
जैसे की हम जानते ही है कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में तमिलनाडु में कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए थे, जिसमें 98 साल पहले ‘अर्धनग्न फकीर’ बनना भी शामिल है। जिसे रौलेट एक्ट भी कहते हैं, पर क्या आप जानते है कि रौलेट एक्ट के पीछे की कहानी?
रौलट एक्ट 8 मार्च, 1919 को लागू किया गया था। भारत में क्रान्तिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय भावना को कुचलने के लिए बिट्रिश सरकार ने न्यायाधीश ‘सर सिडनी रौलट’ की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की। भारतीय नेताओ द्वारा कड़ाई से विरोध करने के बाद भी रौलट एक्ट लागू कर दिया गया।
रौलट एक्ट के खिलाफ हड़ताल का विचार महात्मा गांधी के मन में तब आया जब वह 1919 में तमिलनाडु में सी. राजगोपालाचारी के निवास पर रुके थे।
दो साल बाद, 1921 में मंदिरों के शहर मदुरै में गांधी ने अपनी शर्ट और टोपी का त्याग कर खादी की धोती और एक शॉल के साथ जिंदगी गुजारना और स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार शुरू किया।
बता दें कि उस भूमि में, एक कहावत है कि ‘आल पाथि, आदै पाथि’ अथार्त किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का पचास प्रतिशत हिस्सा उसके कपड़ों से परिलक्षित होता है। लेकिन गांधी ने एक अलग अर्थ दिया -एक अर्धनग्न- आधा तन ढंका इंसान।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टल चर्चिल ने गांधी के कपड़ों को देखर उन्हें अधनंगा फकीर कह डाला था।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर विदेशी कपड़े जलाए गए थे। लेकीन जब गाधीं को यह अहसास हुआ कि गरीब खादी का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं और इसलिए वे ‘विदेशी’ मैटेरियल से बने कपड़े नहीं जला सकते।
22 सितंबर, 1921 को गांधी ने अपनी इस पोशाक को बदलकर बस धोती और शॉल में रहने का फैसला किया। जिस स्थान पर उन्होंने पहली बार अपने नए परिधान में लोगों को संबोधित किया, उसे मदुरै में ‘गांधी पोटल’ कहा जाता है।
1960 के दशक से तमिलनाडु की राजनीति में एक मुश्किल विषय माना जाता था, यह गांधी थे, जिन्होंने यहां 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी और लोगों को एकजुट किया गया। सभा का उद्देश्य दक्षिणी राज्यों में हिंदी का प्रचार करना था। प्रथम प्रचारक गांधी के अपने पुत्र देवदास गांधी थे।
महात्मा गांधी की एक अनसुनी कहानी
महात्मा गांधी एक ऐसे व्यकित थे जो केवल सच और शांति के मार्ग पर चलते थे। वह संघर्ष तो करते थे परन्तु बिना शोर-शराबे के साथ। बता दें कि यह किस्सा तब का है जब भारत-पाकिस्तान का बटवारा चल रहा था। देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। तब बापू दंगे शांत कराने को बंगाल गए थे लेकिन वहां आक्रोशित मुसलमान भाइयों को जब गांधी जी समझाने का प्रयास कर रहे थे तो एक मुसलमान ने गांधी जी के मुंह पर थूक दिया।
इतनी बड़ी गलती के बाद जब कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं ने उसे पकड़ा तो बापू बोले कि इन लोगों में गुस्सा है और मुझे ख़ुशी है कि किसी एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो।
इतना सुनते ही वह मुस्लिम युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और वहां हो रहे दंगे भी काफी कम होने लगे।