(अर्पित भाटिया)
इंसानियत, जम्हूिरियत और कश्मीलरियत.. यह तीन शब्द सुनते ही आपके ज़हन में अटल बिहारी वाजपायी की तस्वीर सामने आई होगी.. जी हां… यह केवल तीन शब्द नहीं हैं.. यह चिंता थी एक प्रधानमंत्री की.. प्रधानमंत्री जो वाकही कश्मीरियों के लिए कुछ करना चाहते थे.. इंसानीयत यानी मानवता, जम्हूरियत यानी लोकतंत्र और कश्मीरियत यानी कश्मीर की जनता.. इन तीनों मोतियों को एक धागे में जिसने पिरौया या कहे कि पिरौने का प्रयास किया वो यह अटल ही थे.. लेकिन पुलवामा हमले के बाद आज जैसी ख़बरें हमारे सामने आ रही हैं उन्हें देख शायद आज अटल जी की आत्मा भी रो रही होगी…
एक ओर तो हम कहते नहीं चूकते की कश्मीर हमारा है, हमारे देश का अटूट अंग है.. तो वहीं कश्मीरी पुलवामा हमले के बाद पूरे देश से कश्मीरियों के प्रताड़ित होने की तस्वीर सामने आ रही है.. कहीं किसी एक कश्मीरी छात्र की कट्टरवाद सोच पूरे शहर में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों पर अंगार बनकर बरस रही है.. तो कई जगह कश्मीरियों के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगाया जा रहा है…
सबसे पहले बात करते हैं देहरादून के महाविद्यालयों की.. देहरादून में एक-दो शरारती तत्वों का खामियाजा पूरे शहर में पढ़ रहे कश्मीरी छात्र को उठाना पड़ा.. कहीं कश्मीरी छात्रों ने अपने आप को कॉलेज के हॉस्टल में बंद कर लिया तो वहीं कुछ असामाजिक तत्व अफवाह फैलाते नहीं थक रहे कि देहरादून में कश्मीरियों को मारा-पीटा जा रहा है…
अब बात करते हैं नोएडा के एक होटल की.. जहां होटल के प्रबंधन ने बिना हिचकी लिए एक बोर्ड लगा दिया जिसमे लिखा था कि इस होटल में कश्मीरियों को कमरा नहीं दिया जाएगा.. वहीं जब होटल संचालक से इस बारे में पूछा गया तो महाशे यह कहते हैं कि होटल में आ रहे दूसरे मेहमान होटल में किसी कश्मीरी के मौजूद होने पर कमरा लेने से इंकार कर रहे हैं.. शायद होटल संचालक के पास इतना ज्ञान नहीं था कि वो उन लोगों को समझा सके कि कश्मीरी हमारे ही देश के साथी हैं.. तो डरने की क्या बात हैं..
वहीं हाल ही में दिल्ली के नांगलोई स्टेशन के पास एक घटना सामने आई है जहा एक ट्रेन में कुछ बदमाशों ने ट्रेन में सवार तीन कश्मीरियों को पत्थरबाज कहकर उनकी बैल्टों से पिटाई शुरू कर दी.. जिसपर उन कश्मीरियों ने अपनी जान बचाने के लिए चलती ट्रेन से कूदना बहतर समझा.. तीनों कश्मीरी अपना दो लाख का सामान छोड़कर ट्रेन से कूद पड़े…
जब हमारे परिवार मे हमारा बेटा, भाई या कोई भी सदस्य गलत राह पकड़ लेता है तो हम उसे समझाते है, उसकी समस्या सुनते हैं.. जिस वजह से वो हमारे खिलाफ हुआ उसपर ध्यान देते हैं.. न कि उसको अलग करके उसको बागी बनने का बढ़ावा देते है.. पुलवामा हमले के बाद कश्मीरियों को ही हमने अपना दुश्नन समझ लिया.. माना कि पुलवामा हमले में जितना गुनहगार पाकिस्तान है उतना ही कश्मीर में रह रहे वो लोग भी हैं जिन्होने आतंकवादियों के इस मंसूबे को सच कर दिखाया.. इसलिए हम आपसे अपील करते हैं कि कश्मीरियों को गलत बोलना बंद कीजिए.. ऐसा करने से वो हमसे और दूर ही होंगे..