देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है दिवाल, जानिए ये तरीके
दीपावली का त्योहार भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। हालांकि, रोशनी का यह त्योहार देश के हर हिस्से में एक ही तरह से नहीं मनाया जाता।
हम आपको कुछ ऐसे रोचक तथ्यों के बारे में भी बताएंगे जो दीपावली के इतिहास और महत्व को और गहरा बनाने का काम करते हैं। साथ ही अपको उन अलग परंपराओं के बारे में भी बताएंगे जिनके चलते अलग अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से दिवाली मनाई जाती है।
उत्तर भारत –
उत्तर भारत के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्र आते हैं। उत्तर भारत में दिवाली का त्यौहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्री कृष्ण द्वारा शुरू की गई नई परंपरा व उत्सव से जुड़ा हुआ है।
यहाँ पर दिवाली का पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहला दिन धन के देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है, जिसे धनतेरस कहते हैं; दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का दिन है, इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं।
इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था; तीसरा दिन माता सीता और श्री राम के अयोध्या वापस आने से जुड़ा है। इसे बड़ी दिवाली कहते हैं। बड़ी दिवाली के दिन सभी लोग नए कपड़े पहनकर अपने-अपने घरों में शाम के समय गणेश और लक्ष्मी का पूजन करते हैं। फिर दीप जलाने के बाद पटाखे जलाते हैं।
चौथा दिन गोवर्धन पूजा यानी श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है तो वहीं पांचवा दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। असल में उत्तर भारत में इस त्यौहार की शुरुआत दशहरे के साथ ही हो जाती है।
दक्षिण भारत
दक्षिण भारत के अंतर्गत आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र आते हैं। दक्षिण भारत में दिवाली का पर्व केवल दो दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का विशेष महत्त्व है।
नरक चतुर्दशी के दिन यहाँ के लोग पारंपरिक तरीके से स्नान यानी तेल से स्नान करते हैं। तेल से स्नान इसलिये शुभ माना जाता है क्योंकि यहाँ के लोगों का मानना है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मारने के बाद खून के धब्बे हटाने के लिये तेल से स्नान किया था।
वहीं, दूसरे दिन दीप जलाकर, रंगोली बनाकर दिवाली मनाते हैं। यहाँ पर लक्ष्मी और नारायण की पूजा होती है।
मध्य भारत –
मध्य भारत के अंतर्गत प्रमुख रूप से दो राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आते हैं। यहाँ भी दीपावली का त्यौहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। यहाँ के आदिवासियों में भी दीपावली के त्यौहार को लेकर काफी उत्साह रहता है।
इस दिन स्त्री-पुरुष सभी नृत्य करते हैं और एक दूसरे के बीच दीपदान की भी परंपरा को निभाते हैं, मध्य भारत में रंगोली की बजाय मांडना बनाने की परंपरा है। यहाँ दियों और मोर के पंखों से घर को सजाया जाता है।
पश्चिम भारत-
पश्चिम भारत के अंतर्गत गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव के क्षेत्र आते हैं। उत्तर भारत की तरह पश्चिम भारत में भी दिवाली का त्यौहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र मे यह पर्व केवल चार दिनों तक मनाया जाता है।
दक्षिण के लोग पहले दिन वसुर बरस मनाते हैं जिसमें गाय और बछड़े की पूजा की जाती है; दूसरे दिन धनतेरस मनाते हैं जिसमें व्यापारी वर्ग बही-खाते का पूजन करते हैं; तीसरे दिन नरक चतुर्दशी होती है जिसमें उबटन कर सूर्योदय से पहले स्नान करने और स्नान के बाद परिवार सहित मंदिर जाने की परंपरा है। फिर चौथे दिन दिवाली मनाई जाती है जिसमें शाम के समय मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
इस दिन यहां पर करंजी, चकली, लड्डू, सेव जैसे पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं। गुजरात में दिवाली को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है।