Covaxin को WHO से अंतराष्ट्रीय मान्यता तो मिली लेकिन साथ ही इन शर्तों को मानना जरूरी | Nation One
आखिरकार लंबे इंतजार के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के स्वदेशी टीके कोवैक्सीन को आपात इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी।
भारत के लिए यह उपलब्धि ज्यादा बड़ी इसलिए है कि डब्ल्यूएचओ ने इस टीके को मंजूरी देकर कोरोना महामारी से निपटने में भारत के प्रयासों पर मुहर लगाई है।
कोवैक्सीन से पहले डब्ल्यूएचओ दुनिया के जिन टीकों को मंजूरी दे चुका है, उनमें फाइजर-बायोएनटेक, आक्सफोर्ड ऐस्ट्राजेनेका, जानसन एंड जानसन, माडर्ना और सिनोफार्म के टीके शामिल हैं।
कोवैक्सीन को भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के साथ मिल कर बनाया है। इसे मंजूरी के लिए भारत बायोटेक काफी समय से प्रयास कर रही थी।
लेकिन डब्ल्यूएचओ ने परीक्षण संबंधी आंकड़ों को लेकर कुछ सवाल उठाए थे। भारत ने कोवैक्सीन को मंजूरी नहीं देने का मामला हाल में इटली में हुई समूह-20 देशों की बैठक में भी उठाया था।
भारत का कहना था कि अगर कोवैक्सीन को मंजूरी मिल जाती है तो वह दूसरे देशों को भी जल्द ही टीकों का निर्यात बढ़ा सकेगा और महामारी से निपटने में अपना योगदान दे सकेगा।
जाहिर है, डब्ल्यूएचओ पर प्रधानमंत्री की अपील का दबाव बना और उसने महामारी से लड़ाई में भारत के योगदान को भी स्वीकार किया।
भारत को दुनिया में टीका निर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में देखा जाता है। कई तरह के टीके यहां बनते हैं और दूसरे देशों को भेजे जाते हैं।
इसीलिए कोरोनारोधी टीकों के मामले में भी दुनिया को सबसे ज्यादा उम्मीद भारत से ही रही है। कोविशील्ड को आक्सफोर्ड-ऐस्ट्रेजेनिका ने विकसित किया था, पर उसका उत्पादन भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया कर रही है।
इसी तरह हैदराबाद की भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन पर काम शुरू किया था। कोवैक्सीन को लेकर शुरू से यह दावा भी किया जाता रहा है कि यह दुनिया के कई टीकों को टक्कर देने वाला साबित होगा।
इसे निष्क्रिय विषाणु से तैयार किया गया है, इसलिए दूसरे कोरोना रोधी टीकों की तुलना में इसके निर्माण की प्रक्रिया कहीं जटिल है।
इसलिए परीक्षण से लेकर इसके उत्पादन तक में बाधाएं भी आईं। इस कारण भारत में टीकाकरण अभियान में कोविशील्ड की भागीदारी काफी ज्यादा देखने को मिली।
हालांकि अब कोवैक्सीन का उत्पादन भी बढ़ रहा है और वैश्विक निकाय की मंजूरी के बाद इसके निर्यात का भी रास्ता साफ हो गया है।
कोवैक्सीन को डब्ल्यूएचओ की मंजूरी नहीं मिलने को इस आशंका के तौर भी देखा जा रहा था कि कहीं यह टीका और टीकों के मुकाबले कम प्रभावी या खामियों भरा तो नहीं है।
इसलिए अब इसे डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलने से इस तरह की किसी भी आशंका या डर पर विराम लग गया है। डब्ल्यूएचओ ने साफ कहा है कि उसके वैज्ञानिकों ने इसे जांच में पूरी तरह से मानकों पर खरा और प्रभावी पाया है।
कोवैक्सीन को मान्यता मिलने का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि इसे लगवाने वाले अब बेरोकटोक विदेश यात्रा कर सकेंगे। अभी तक कई देशों ने कोवैक्सीन लगवाने वालों के लिए एकांतवास जैसी शर्त को अनिवार्य कर रखा था।
हालांकि आस्ट्रेलिया, एस्तोनिया, किर्गिस्तान, फिलस्तीन, मारीशस, मंगोलिया और ओमान जैसे देश अपने यहां कोवैक्सीन को पहले ही मान्यता दे चुके हैं।
डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलने के बाद अब कोई भी देश इसे खरीदने में हिचकिचाएगा नहीं। कोवैक्सीन को मंजूरी टीकाकरण की रफ्तार और उपलब्धता दोनों में वृद्धि होगी।
इससे जल्द टीकाकरण और टीका समानता के भारत और डब्ल्यूएचओ के साझा लक्ष्यों को आसानी से हासिल किया जा सकेगा।