कोर्ट, पुलिस और गवाह बनता मीडिया, आखिर क्या हैं मीडिया ट्रायल ? | Nation One
अमूमन आप लोगो ने मीडिया ट्रायल के बारे में ज़रूर सुना होगा। पिछले कुछ समय से भारत में कुछ ऐसे हाई प्रोफ़ाइल केस देखने को मिले है जिसमें मीडिया ने हर स्तर की पत्रकारिता करके ये साबित कर दिया है कि मीडिया वकील भी है, पुलिस भी गवाह भी और तो और फैसला भी मीडिया ही सुनाएगी।
सुनने में बहुत अजीब सा लगता है ना कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है मीडिया को ये अधिकार कैसे हो सकता है। आपका सोचना भी जायज़ है और उस पर उंगली उठाना भी। हाल ही में एक ऐसा ही हाई प्रोफ़ाइल सुसाइड केस सुशांत सिंह राजपूत का मामला आप देख सकते है। कुछ निजी समाचार चैनलों ने इस पूरे मामले में एक अजीब तरह की पत्रकारिता को देश के सामने लाए है। जिन्हे देखकर ऐसा लगता है कि ये ही देश का सबसे बड़ा कोर्ट है। इन्होंने जो फैसला सुना दिया वहीं सर्वमान्य होगा।
देश की सरकार को ऐसे चैनलों के मालिकों और एंकरों को तरह तरह के अवॉर्ड से नवाजा जाना चाहिए कि आखिर इतनी काबिलियत किसी इंसान में कैसे हो सकती है कि बिना कोर्ट के फैसले के आप अपनी चैनलों के शो में चैनल को अदालत बना लेते है। आप खुद वकील बनकर खड़े हो जाते है और जब तक सामने वाले को फांसी ना हो जाए आप कोर्ट से बाहर ही नहीं निकलते।
आखिर आज के दौर में ये मीडिया को हो क्या गया है। क्या लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ इसलिए ही कहा गया था कि बिना सोचे समझे किसी भी मामले के निष्कर्ष पर पहुंच जाओ। आज के कुछ मीडिया हाउस को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि सरकारों को कोर्ट को बंद करके मीडिया को सभी केस सौंप देने चाहिए और फिर देखो तत्काल प्रभाव से कार्यवाही।
मीडिया ट्रायल होना कोई ग़लत नहीं है लेकिन वो ट्रायल सिर्फ ट्रायल के तौर पर किया जाना चाहिए उसमे इतना अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए कि मीडिया डिसाइड करे कि किसका क्या ज़ुल्म है और क्या सज़ा मिलनी चाहिए।
अगर मीडिया ऐसा सबकुछ करता रहा तो फिर पुलिस की भी ज़रूरत कहा रह जाती है। ये सोचना होगा हर एक उस एंकर को जो टीआरपी के चक्कर में मीडिया के मौलिक सिद्धांत ही भूल गए। आज मीडिया को लोग तवायफ की नज़रों से देखने लगे है जितना ज़्यादा पैसा दोगे उतना ही उसको अपने कोठो पर नचाओगे।
अरे बंधुओ अभी भी संभल जाओ नहीं तो आने वाले वक़्त में लोग आपको नचाएंगे भी और वो भी बिल्कुल फ्री। वैसे तो हिदायत ये ही है एक पत्रकार की तरह काम करो जज वकील और गवाह बनने की कोशिश मत करो इनकी हमारे देश में कोई कमी नहीं है। कहीं आपका भी वही काम ना हो जाए जैसे एक कोवे ने मोर के पंख लगा लिए और अपने साथियों में जाकर बोला वो मोर है फिर क्या वहा भी मार खाई और मोर से भी। पता चला अपनी पहचान भी खोई और मिला भी कुछ नहीं।
अगर मीडिया ट्रायल में ये सब कुछ चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब मीडिया से लोग दूरी बनाना शुरू कर देंगे। वैसे पिछले कुछ समय से देखे तो ग्राफ तेजी से गिरता नजर आ रहा है। बहुत हद्द तक मीडिया की विश्वसनीयता पर बड़े गंभीर सवाल खड़े हो गए है।
अरे भाई पुराने खिलाड़ियों उनके बारे में तो सोचो जो बेचारे इस प्रोफेशन में नए नए आए है या आने वाले है क्या बीतती होगी उनके ऊपर जब वो आज का ये मीडिया देखते होंगे। बस करो और अपना काम करो अगर आपको वकील ही बनना है तो एलएलबी करो कोर्ट जाओ मीडिया में आपका कोई काम नहीं है। वैसे व्यक्तिगत तौर पर लिख रहा हूं कि आज के समय के मीडिया को देखते हुए मीडिया ट्रायल पूरी तरह से बंद होना चाहिए ये काम कोर्ट को करना चाहिए ना कि मीडिया को।
आदिल पाशा की रिपोर्ट