छत्तीसगढ़ का लोक साहित्य एवं वाचिक परम्परा है “सुआ नृत्य गीत” | Nation One

छत्‍तीसगढ़ी परम्‍पराओं में लोकगीतों का प्रमुख स्थान है। इन लोकगीतों में छत्‍तीसगढ़ी संस्‍कृति की स्‍पष्‍ट झलक मिलती है। यहाँ के लोकगीतों की समृद्ध परम्‍परा में भोजली, गौरा, सुआ व जस गीत जैसे त्‍यौहारों में गाये जाने वाले लोकगीतों के साथ ही करमा, ददरिया, बाँस, पंडवानी जैसे सदाबहार लोकगीत शामिल हैं। इन गीतों में यहाँ के सामाजिक जीवन व परम्‍पराओं को भी परखा जा सकता है।

सुआ नृत्य गीत कुमारी कन्याओं तथा विवाहित स्त्रियों द्वारा समूह में गाया और नाचा जाता है। इस नृत्य गीत के परंपरा के अनुसार बाँस की बनी टोकरी में धान रखकर उस पर मिट्टी का बना, सजाया हुआ सुवा रखा जाता है। लोक मान्यता है कि टोकरी में विराजित यह सुवा की जोड़ी शंकर और पार्वती के प्रतीक होते हैं।

धान से भरी टोकरी में तोते की दो मूर्तियाँ होती है। महिलाएँ इन्हें ही संबोधित करके सुआ गीत गाती हैं। टोकरी को सिर पर धारण करने वाली लड़की को सुग्‍गी कहा जाता है। सुआ गीत लोक में इतना प्रिय है इसमें जाति बंधन नहीं है। सुआ नृत्य में सभी जाति की महिलाएँ भाग लेती हैं इस प्रकार से सुआ गीत को किसी जाति विशेष का गीत नृत्य मानना उचित नहीं प्रतीत होता।

सुवा नृत्य सामान्यतया सँध्या को आरंभ किया जाता है। गाँव के किसी निश्चित स्थान पर महिलाएँ एकत्रित होती हैं जहाँ इस टोकरी को लाल रंग के कपड़े से ढँक दिया जाता है। टोकरी को सिर में उठाकर दल की कोई एक महिला चलती है और किसानों के घर के आँगन के बीच में उसको रख देती हैं। दल की महिलाएँ उसके चारों ओर गोलाकार खड़ी हो जाती हैं। टोकरी से कपड़ा हटा लिया जाता है और दीपक जलाकर नृत्य किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में इस गीत नृत्य में कोई वाद्ययंत्र उपयोग में नहीं लाया जाता। महिलाओं के द्वारा गीत में तालियों से ताल दिया जाता है।प्राचीन परंपरा में सुवा गीत नृत्य करने महिलाएँ जब गाँव में किसानों के घर-घर जाती थीं तब उन्हें उस नृत्य के उपहार स्‍वरूप पैसे या अनाज दिया जाता है पारम्परिक रूप से सुवा नृत्‍य करने वाली नारियाँ हरी साड़ी पहनती हैं जो पिंडलियों तक आती है, आभूषणों में छत्‍तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण करधन, कड़ा, पुतरी होते हैं।

सुआ सामूहिक गीत नृत्‍य है इसमें छत्‍तीसगढ़ की नारियाँ मिट्टी से निर्मित सुआ को एक टोकरी के बीच में रख कर वृत्‍ताकार रूप में खड़ी होती हैं। सुआ की ओर ताकते हुए झुक-झुक कर चक्राकार चक्‍कर लगाते, ताली पीटते हुए नृत्‍य करते हुए गाती हैं। ताली एक बार दायें तथा एक बार बायें झुकते हुए बजाती हैं, उसी क्रम में पैरों को बढाते हुए शरीर में लोच भरती हैं। इस नृत्‍य में स्त्रियाँ तोते की ग्रीवा की तरह सिर हिलाती हैं। नृत्‍य करते हुए गोल घेरे में जब यह नाचती हैं तो इनकी टाँगें तोते की उठी हुई टाँग जैसी दिखती हैं।

रिपोर्ट : दीपक यादव