नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के हटाए गए दो अस्थायी चिकित्सा अधिकारियों को बहाल कर दिया गया है. उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 19 वर्षीय युवती के साथ कथित गैंगरेप और मौत के मामले में राज्य पुलिस के उलट बयान देने के कारण हाल ही में दोनों को हटाया गया था. इधर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का कहना था कि इनकी नियुक्ति एक साल के लिए ही की गई थी और उन्हें कार्यकाल समाप्त होने के बाद हटाया गया.
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता उमर पीरजादा ने बताया, ‘अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा बुधवार को भेजे गए प्रस्ताव के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने दोनों डाक्टरों का कार्यकाल बढ़ाए जाने का निर्देश दिया है.’ आपको बता दें, हाथरस प्रकरण में सीबीआई द्वारा पूछताछ के 24 घंटे के अंदर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में दो अस्थायी चिकित्साधिकारियों को हटाये जाने पर विवाद खड़ा हो गया था. तब मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने बताया कि जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में अस्थायी चिकित्साधिकारी के तौर पर काम कर रहे डॉक्टर मोहम्मद अजीमुद्दीन मलिक और डॉक्टर उबैद इम्तियाज हक की सेवाएं समाप्त की जा रही हैं.मलिक ने अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार के बयान के उलट कहा था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए 11 दिन बाद सैंपल लिए जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इससे रेप होने की पुष्टि नहीं हो सकती है जबकि, सरकारी दिशानिर्देशों के मुताबिक, फॉरेंसिक रिपोर्ट में सही परिणाम आने के लिए घटना के 96 घंटे के भीतर सैंपल लिया जाना चाहिए.कुमार ने फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि चूंकि जांच के दौरान शरीर पर वीर्य नहीं पाया गया है, जो बताता है कि रेप नहीं हुआ था.
इसके बाद 16 अक्टूबर को डॉ. अजीम एक को पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि अस्पताल के अस्थायी सीएमओ बनाने के उनके कॉन्ट्रैक्ट को और आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे डॉ. अजीम को अगस्त में उस समय सीएमओ बनाया गया था, जब अस्पताल के 11 में से छह सीएमओ कोरोना संक्रमित पाए गए थे.उनकी नौकरी को नवंबर महीने तक के लिए बढ़ाया जाना था लेकिन, बीते 16 अक्टूबर को उन्हें नोटिस देकर कहा गया कि उनका कार्यकाल 10 अक्टूबर से लेकर आठ नवंबर तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया गया है.इसके बाद 20 अक्टूबर को उन्हें उनके पद से तत्काल हटाने का नोटिस दिया गया. डॉ. अजीम के अनुसार, उनके बयान की वजह से अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को वाइस चांसलर ने फटकार लगाई थी.
एएमयू के अधिकारियों के मुताबिक, दोनों को नौ सितंबर को एक महीने के लिए नौकरी पर रखा गया था. उसके बाद उन्हें स्थिति के बारे में पूरी तरह अवगत कराया गया था. ऐसे में उन्हें हटाया जाना सामान्य प्रक्रिया है.रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने बीते बुधवार को एएमयू के कुलपति को लिखे पत्र में उनसे दो डॉक्टरों की बर्खास्तगी का आदेश वापस लेने का आग्रह किया था.पत्र में कहा गया था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो एसोसिएशन 24 घंटे के अंदर अपनी बैठक बुलाकर भविष्य की रणनीति तय करेगा.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखे एक पत्र में प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिफिक फोरम (पीएमएसएफ) के अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह ने दोनों को वापस बहाल करने की मांग की थी.गुरुवार को भेजे गए पत्र में कहा गया था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन दो डॉक्टरों को इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उनका बयान हाथरस के कथित सामूहिक बलात्कार मामले में पुलिस के बयान से मेल नहीं खाता.बर्खास्त किए गए डॉ. अजीमुद्दीन और डॉ. इम्तियाज ने बुधवार को कहा था कि उन्होंने हाथरस मामले में कोई गलत बयान नहीं दिया था. सेवा समाप्ति से पहले उन्हें अपनी सफाई देने तक का मौका नहीं दिया गया.दोनों ने कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी.
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हाथरस पीड़िता की मौत के दो दिन बाद एक अक्टूबर को यूपी पुलिस ने कहा था कि महिला के साथ बलात्कार का कोई ‘सबूत’ नहीं है.हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर ने भी कहा था कि अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है.दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल ले जाने से पहले पीड़िता इसी अस्पताल में 14 दिनों तक भर्ती थी. हाथरस मामले में रेप न होने का दावा करने वाले एडीजी प्रशांत कुमार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी फटकार लगाई थी और पूछा था कि क्या बलात्कार को लेकर साल 2013 में कानून में हुए संशोधन को लेकर उन्हें जानकारी नहीं है, जिसके तहत रेप साबित करने के लिए शरीर पर वीर्य का पाया जाना जरूरी नहीं है.