अन्याय पर न्याय को विजय दिलाने के लिए हम न्याय व्यवस्था का दरवाजा खडखडाते है। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हे कानून पर बिलकुल भरोसा नही होता, वह अपना बदला खुद लेना चाहते है।
ऐसे लोग समाज में या तो अच्छी छवि छोड जाते है या अपने ऊपर कलंक लगवा लेते है। लेकिन कुछ भी राय बनाने से पहले उनके बारे मे जानना जरूरी है। चलिए आज आपको बताते है फूलन देवी नाम की महिला की खोफनाक कहानी।
कौन थी फूलन देवी ?
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में यूपी के जालौन जनपद के एक छोटे से गाँव गोरहा में हुआ था। फूलन के पिता एक मल्लाह थे।
अब बेटी ने जन्म लिया था तो पालने की, बड़ा करने की और शादी की चिंता से मल्लाह का सिर फटा जा रहा था। भले ही उसके जन्म का दिन खास नही था, परन्तु मत्यू ने पूरा हड़कंप मचा दिया। वह बचपन से ही सही-गलत की लड़ाई के लिए भिड़ जाती थी।
वहीं पिता की मृत्यु के बाद बड़ा भाई घर का मुखिया बना और ज़मीन भी हड़प ली। फूलन की ज़मीन पर कब्ज़ा उसके चाचा ने कर लिया था, वह उनसे भिड़ गई और अपने हक़ के लिए फूलन धरने पर जा बैठी।
सिर्फ 11 साल की उम्र में हो गई थी फूलन देवी की शादी
फूलन देवी की शादी 11 साल की उम्र में ही कर दी गई थी। फूलन के ससुराल वाले ठीक नहीं थे, वह वहां से भाग निकली और घर लौट आई। उसके चचेरे भाई ने इस मौके का फायदा उठाकर एक झूठे आरोप में उसे जेल भिजवा दिया।
जेल में भी उसे शारीरिक शोषण झेलना पड़ा। वह जेल से निकलने में सफल रही। परिस्थितियों से तंग आकर फूलन नए रास्ते पर निकल पड़ी जो काफी कठिन भी था।
कैसे बनी फूलन देवी डकैत
जब फूलन 20 साल की थी, उसको अगवा कर बलात्कार किया गया। शादी के नाम पर भी वह इसी पीड़ा को झेलती आ रही थी। और जब फूलन ने पुलिस की मदद लेने की सोची तो वहा भी उसका शारीरिक शोषण हुआ।
इन सब को देखते हुए इस बार उसने हथियार उठाने का फैसला किया। बता दें कि फूलन के जीवनी पर एक फिल्म भी बनी है जिसका नाम ‘बैंडिट क्वीन’ है।
फूलन हथियार उठाने के बाद, अपने पति के गांव पहुंची, जहां उसने उसे घर से निकाल कर लोगों की भीड़ के सामने चाकू मार दिया और सड़क किनारे अधमरे हाल में छोड़ कर चली गयी।
इस हादसे के बाद फूलन ने ऐलान भी किया कि आज के बाद कोई भी बूढ़ा किसी जवान लड़की से शादी नहीं करेगा।
फूलन की परिस्थिति बदली नही
फूलन की परिस्थितियों अभी भी बदली नही थी। क्योकि गिरोह के सरदार बाबू गुज्जर का दिल फूलन देवी पर आ गया।
देखा जाए तो यह बस गुज्जर शारीरिक भूख थी, जो उसे फूलन की तरफ खीचती थी। जब वह अपनी कोशिशो पर कामयाब नहीं हो पाया, तो एक दिन उसने फूलन के साथ जबरदस्ती की।
विक्रम मल्लाह, जिसका स्थान बाबू गुज्जर के बाद आता था, उसने इसका विरोध किया। लेकिन वह नही माना। अंत मे विक्रम ने बाबू की हत्या कर दी और खुद को सरदार घोषित कर दिया।
इसी दौरान गिरोह मे दो लोग शामिल हुए। जिनका नाम श्री राम तथा लाला राम था, इन के आने के बाद गिरोह में फूट पड़ गई। जिसके बाद विक्रम मल्लाह को उन्ही के गिरोह वालों ने मार दिया और वह फूलन को बंदी बनाकर अपने गांव ले गए।
यहां फूलन के हालात काफी नाजुक थी, उसको एक कमरे में भूखे प्यासे बंद करके रखा था और उसके साथ केवल दुष्कर्म नहीं बल्कि सामूहिक दुष्कर्म हुआ।
इतना सब सहने के बाद भी फूलन जिंदा थी। जब फूलन के पुराने साथियों को इस बात की सूचना मिली, तो वे छुपते-छुपाते फूलन को वहां से बचाकर ले गए। हालंकि फूलन वहां से निकल गई पर उसके घाव बहुत गहरे थे।
फूलन की बदला लेने की आग
अपना बदला लेने के लिए फूलन ने अपने साथी मान सिंह मल्लाह की मदद से गिरोह का पुनः गठन किया और उसकी सरदार खुद बनी। जैसे-जैसे फूलन के घाव भर रहे थे वैसे-वैसे बदले की आग भी बढ़ रही थी।
14 फरवरी 1981 को फूलन को अपना बदला लेने का मौका मिला। वह अपने लोगो के साथ पुलिस के भेस में बेहमई गांव पहुंची। जहां एक शादी का आयोजन हो रहा था। फूलन और उसके साथियो ने पूरे गांव को घेर लिया परन्तु अपने दुश्मनो को वहां ना देख कर फूलन देवी बौखला गयी।
जानकारी के लिए बता दे कि उस घटना के गवाह बचे चंदर सिंह ने एक समाचार एजेंसी को बताया था, “फूलन ने सबसे पहले पूछा कि लाला राम कहां है?
उसके मन मुताबिक जवाब ना मिलने के बाद, फूलन ने फ़ायर करने का आदेश दे दिया। लेकिन चंदन सिंह अकेले ऐसे थे जो गोली लगने के बाद भी बच गए।
कुछ शर्तो के बाद आत्म सम्पर्ण
इस कांड के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर हो गई थी। बता दें कि लूट-पाट करना, अमीरों के बच्चों की फिरौती लेना, फूलन के गिरोह का काम बन गया था। कुछ समय बाद फूलन आत्म समर्पण के लिए पूरी राजी हो गई, लेकिन कुछ शर्तो के साथ।
फूलन की पहली शर्त मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की थी। दूसरी शर्त के तहत अपने किसी भी साथी को ‘सज़ा ए मौत’ न देने का आग्रह किया।
तीसरी शर्त में उसने उस जमीन को वापस करने के लिए कहा, जो उसके पिता से हड़प ली गई थी और साथ ही उसने अपने भाई को पुलिस में नौकरी देने की मांग की।
पुलिस ने फूलन की सभी शर्तें मान लीं, केवल दूसरी मांग को छोड़कर। फूलन ने 13 फरवरी 1983 को मध्यप्रदेश पुनास में आत्मसमर्पण किया।
फूलन देवी का राजनीति मे प्रवेश
फूलन देवी पर काफी मुकद्दमे चले जिसमें 22 कत्ल, 30 लूटपाट तथा 18 अपहरण के मामले थे। इनकी कार्यवाही में ही 11 साल बीत गए।
साल 1993 में मुलायम सिंह की सरकार ने उन पर से सारे मुकद्दमे हटाकर, उन्हें बरी करने का मन बनाया और 1994 में रिहा कर दिया गया।
1996 में फूलन ने समाजवादी पार्टी के टिकट से मिर्जापुर की सीट जीती और राजनीति का हिस्सा बनी। उसका जीतना यह दर्शाता है कि जनता के दिल में फूलन देवी के लिए काफी जगह है।
परन्तु अतीत किसी का पीछा नहीं छोड़ता, 25 जुलाई 2001 को उनके आवास के सामने ही शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी।
हत्या के बाद शेर सिंह राणा ने बताया उसने फूलन देवी को मार कर बेहमई जनसंहार का बदला लिया और बदला कैसे लेते है यह भी फूलन देवी से ही सीखा।