50 एकड़ जमीन हाथियों के नाम कर अख्तर अब रामनगर में बसाएंगे गांव | Nation One
रामनगरः बिहार में पांच करोड़ की (50 एकड़) जमीन बेजुबान हाथियों के नाम करने वाले अख्तर इमाम अब उत्तराखंड के रामनगर में हाथी गांव बसाने की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सांवल्दे में 26 बीघा जमीन लीज पर ले ली है. यहां हाथियों के रहने के लिए टिन शेड, बिजली, सोलर फेंसिंग, नहलाने के लिए मोटर की व्यवस्था की. खाली पड़ी जमीन पर हाथियों के चारे के लिए चरी उगाई गई है.इस समय यहां मोती नाम के हाथी और रानी हथिनी को पाला जा रहा है. ढिकुली में भी दो हथिनी फूलमाला और गुलाबकली की देखरेख की जा रही है. इन दोनों हथिनियों को भी जल्द ही सांवल्दे लाया जाएगा.
अख्तर इमाम यहां पर दिन-रात हाथियों की सेवा में लगे रहते हैं. उनके साथ पांच अन्य लोग भी इस काम से जुड़े हैं. सभी की अलग-अलग जिम्मेदारी है. अख्तर के अनुसार वह हाथियों के लिए बड़ा काम करना चाहते हैं, इसलिए रामनगर आए हैं. सांवल्दे में वह एक हाथी गांव बसाना चाहते हैं, जिसमें बुजुर्ग और बीमार या दिव्यांग हो चुके हाथियों को रहने की जगह मिल सकेगी.
बिहार की राजधानी पटना के दानापुर जानीपुर के गांव मीरग्यासचक के रहने वाले सय्यद आलम के पुत्र अख्तर इमाम ने बिहार में इसके लिए खूब काम किया. एरावत संस्था बनाई और अपनी 50 एकड़ जमीन संस्था के नाम कर दी. इस संस्था से कई महावत जुड़े हैं. इस पर एक बेटे ने आपत्ति की तो उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया. एक बेटा विदेश में है. बेटी की शादी कर चुके हैं. 2018 में वह रामनगर आ गए. अख्तर ने राज्य सरकार और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को पत्र लिखकर हाथी गांव को पीपीपी मोड में चलाने की मांग की है. चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को पत्र लिखकर नियमानुसार कार्यवाही के निर्देश दिए हैं.
हाथियों ने बदमाशों से बचाया
अख्तर इमाम बताते हैं कि उनकी पिताजी भी हाथी पाला करते थे. इसलिए, बचपन से ही वह हाथियों के करीब रहे. एक बार उन पर जानलेवा हमला किया गया था लेकिन, हाथियों ने उन्हें बचा लिया था. पिस्तौल हाथ में लिए बदमाश जब उनके कमरे की तरफ बढ़ने लगे तो हाथी इसे देखकर चिंघाड़ने लगे. इसी बीच उनकी नींद खुल गई और शोर मचाने पर बदमाश भाग निकले. अख्तर के अनुसार उनकी पत्नी अभी बिहार में ही रह रहीं हैं. उनका कहना है कि, आज इंसान एक-एक इंच जमीन के लिए संघर्ष कर रहा है, ऐसे में हाथियों के लिए जगह कम होती जा रही है. इसके लिए हर किसी को सोचना चाहिए. अगर हाथियों का संरक्षण नहीं किया गया तो हमारी अगली पीढ़ी इस विशाल जानवर को किताबों में ही पढ़ा करेगी. हाथियों की जीवनशैली पर जल्द ही किताब भी लिखने की सोच रहा हूं.