Draupadi Murmu: साधारण महिला की असाधारण शख्सियत, अपने दर्द को भुलाकर बन गई लोगो की ताकत, जानिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का बेमिसाल सफर | Nation One
Draupadi Murmu: NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव जीत गई हैं। लेकिन क्या आप जानते है ये साधारण महिला ओडिशा की संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं ।
देखा जाए तो एक संथाल आदिवासी महिला का देश के दूसरी महिला राष्ट्रपति बनना किसी करिश्मा से कम नही है।
यह एक ऐसी महिला कि कहानी है जिसने टीचर, क्लर्क, मंत्री और अब महामहिम, नई राष्ट्रपति की शख्सियत संभाली है।
ओडिशा की साधारण भूमि मे जन्मी, भारत के राष्ट्रपति भवन तक पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति है।
जहां आजादी के बाद जन्मी देश की पहली राष्ट्रपति जैसी वजहों से तो, असाधारण है हीं, लेकिन दो जवान बेटो और पति को खाने के बाद भी आदर्शो व मूल्यों पर अडिंग रहना उन्हें अनोखा बनाता है।
Draupadi Murmu: ठेठ आदिवासी परिवार में जन्मी भारत की राष्ट्रपति
बता दें कि 20, जून 1958 को संथाल जनजाति के कबीलाई मुखिया बिरंची नारायण टूडू के घर जन्मी द्रौपदी मुर्मू ने उपरबेड़ा गांव के ही स्कूल से ही शिक्षा ग्रहण की।
उनके शिक्षक विश्वेशवर मोहंती का कहना है कि, नेतृत्व का गुण उनमें जन्नजात से था वह इस पद तक पहुचेंगी कभी सोचा भी नही था।
द्रौपदी मुर्मू का हुआ था प्रेम विवाह
द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी । स्नातक करने के लिए जब वह भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में गई तब उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। जो कि प्यार में बदल गई।
मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची
जिसके बाद द्रौपदी के पिता नाराज हो गए। लेकिन दोनो के धैर्य के आगे पिता को भी झुकना पड़ा और आदिवासी गांव में उनका प्रेम विवाह धूम-धाम से हुआ।
द्रौपदी मुर्मू का परिवार, अंतहीन पीड़ा
बता दें कि दोनो के चार बच्चे हुए। इनमें दो बेटे और दो बेटियां।
साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। जिसके बाद 2009 में एक और 2013 में दूसरे बेटे की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई।
2014 में मुर्मू के पति श्याम चरण मुर्मू की भी मौत हो गई है।
दरअसल उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था। हालांकि, अब उनके परिवार में सिर्फ एक बेटी है। जिसका नाम इतिश्री है।
अध्यात्म का करती थी पालन
बता दें कि बेटों और पति की मृत्यु के बाद वह विवादों से बचने के लिए ध्यान करने लगीं। रोज सुबह 3.30 बजे बिस्तर छोड़ वह योद पर ध्यान लगाती थी।
Draupadi Murmu: जनसेवा को बनाया अपना जीवन
जानकारी के अनुसार, राजनीति में कदम रखने सें पहले मुर्मू ने एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत की थी।
जिसके बाद 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया। और 1994 से 1997 तक ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में कार्य किया था।
बता दें कि इस दशक के बाद 1997 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और पार्षद चुनी गईं। इसके बाद उन्होनें जन सेवा को जीवन बनाने का फैसला ले लिया।
वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ीं। और भाजपा सीट पर विधायक भी बनी। 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनी। वहीं 2006 में भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चे की प्रदेश अध्यक्ष बनीं।
जमापूंजी से उतारी देनदारी
2009 में मुर्मू दूसरी बार विधायक बनी। इस दौरान उनके पास कुल जमापूंजी नौ लाख रूपये थी। हालांकि इस पर 4 लाख की देनदारी भी थीं।
जिसके तहत उन्होनें जमीन तक बेच दी। धनबल की कड़वी हकीकत के बीच मुर्मू जैसी जनप्रतिनिधि तो राष्ट्रपति बनना सही मायनों मे लोकतंत्र को और मजबूत करेगा।
लेकिन जब वह 2015 में राज्यपाल बनी, तो उन्होनें राजभवन का रास्ता जनता के लिए खोल दिया। लोगो ने उनकी मदद की हजारों कहानियां सुनाई। वह हमेशा विवादों से दूर रहीं।
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2017 में भाजपा सरकार के सीएनटी-एसटीटी संशोधन विधेयक को आदिवासियों के खिलाफ बताकर वापस लोटा दिया। 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं।
बता दें कि राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के साथ ही वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी। और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने का खिताब भी अपने नाम कर लिया। हालांकि 64 साल की द्रौपदी सबसे कम उम्र की शख्सियत बनेंगी।