उत्तराखंड की इन दो हस्तियों को मिला पद्मश्री पुरस्कार, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित | Nation One
देहरादून : उत्तराखंड की दो हस्तियों दून के आर्थोपेडिक सर्जन डा. भूपेंद्र कुमार संजय और जौनसार के प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा को दिल्ली में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द उन्हें सम्मानित किया।
डा. संजय का नाम लिम्का व गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज है। इससे पहले सोमवार को प्रख्यात पर्यारणविद अनिल जोशी को पद्मभूषण सम्मान, जबक मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत और डा. योगी ऐरन को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था।
डा. संजय स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में एक जाना माना नाम हैं। सर्जरी में हासिल की गई उपलब्धियों को देखते हुए ही उनका नाम लिम्का व गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज है।
वहीं सामाजिक उपलब्धियों के लिए उन्हें इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में स्थान मिल चुका है। 31 अगस्त 1956 में जन्मे डा. संजय ने वर्ष 1980 में जीएसबीएम मेडिकल कालेज, कानपुर से एमबीबीएस किया।
इसके बाद उन्होंने पीजीआइ चंडीगढ़ व सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सेवा दी। फिर स्वीडन, जापान, अमेरिका, रूस व आस्ट्रेलिया आदि में मेरिट के आधार पर प्राप्त फेलोशिप के जरिए वह अपना हुनर तराशते रहे।
यही नहीं कई उनके नाम कई रिसर्च जर्नल भी हैं। जिनमें न केवल भारतीय, बल्कि कई विदेशी जर्नल भी शामिल हैं। 2005 में हड्डी का सबसे बड़ा ट्यूमर निकालने का विश्व रिकार्ड भी उनके नाम दर्ज हुआ।
वहीं खेती और बागवानी के क्षेत्र में प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा को भी पद्मश्री मिला। पुरस्कार लेने को उनके साथ चचेरे भाई जेबीपी फाउंडेशन के चेयरमैन एसएन शर्मा भी गए थे।
बता दें कि प्रेमचंद शर्मा का जन्म देहरादून जनपद के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र जौनसार बावर के चकराता ब्लाक के गांव अटाल में वर्ष 1957 में हुआ।
महज पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रेमचंद को किसानी विरासत में मिली है। कम उम्र में ही वह अपने पिता स्व. झांऊराम शर्मा के साथ खेतीबाड़ी से जुड़ गए थे।
प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा को अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं। प्रेमचंद ने परंपरागत खेती में लागत के मुताबिक लाभ न होता देख नए प्रयोग किए। इसकी शुरुआत उन्होंने 1994 में अनार की जैविक खेती से की।
यह प्रयोग सफल रहा तो उन्होंने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया। उन्होंने अनार के उन्नत किस्म के डेढ़ लाख पौधों की नर्सरी तैयार की। अनार की खेती के गुर सिखाने वह कर्नाटक तक गए।