Supraja Dharini: कछुए की मौत ने बदल दी सोच, कैसे कलाक्रुति से डॉक्टर बनी सुप्रजा धारिणी | Nation One
कभी-कभी हमारी जिन्दगी में कुछ लोग ऐसे आते है जिनसे एक मुलाक़ात में ही पूरी ज़िन्दगी बदल जाती है। ऐसा ही कुछ 2001 में डॉ. सुप्रजा धारिणी के साथ भी हुआ जब नीलंगरई समुद्री तट पर सुबह की सैर के दौरान एक ज़ख़्मी कछुआ मिला।
डॉ. सुप्रजा धारिणी
एक रिपोर्ट के अनुसार डॉ. सुप्रजा आर्ट स्टुडियो में ‘कलाक्रुति’ करती थी लेकिन इस घटना के बाद वह इतनी व्यथित हो गईं कि ‘कलाक्रुति’ छोड़कर समुद्री कछुओं को बचाने में लग गईं। बताया गया हैं कि मछली पकड़ने के जाल में फंस कर कछुए की मौत हो गई थी। कछुए के शरीर पर गहरे घाव भी देखने को मिले।
इस दृश्य से डॉ. सुप्रजा ने थान लिया की वह बदलाव लाएंगी औऱ साथ-साथ लोगों को भी जागरूक करेंगी ताकि आने वाले सनय में ऐसी घटनाएं न हो।
कौन बना डॉ. सुप्रजा की प्रेरणा
डॉ. सुप्रजा को प्रेरणा Jane Goodall जो कि नेशनल ज्योग्राफ़िक चैनल पर पशुओं के संरक्षण के लिए काम करते थे उन्होने दी थी। Jane ने कहा था, “हर एक शख़्स बदलाव ला सकता है।”
क्या था समुद्री कछुओं की हत्या का कारण
सफलता पाने के लिए डॉ. सुप्रजा ने कछुओं की मौत का कारण जानना जरूरी समझा जिसके लिए वह मछुआरों के पास पहुंची। पता चला कि मछली पकड़ने वाले जाल में Turtle Extruders होते हैं जिसकी वजह से समुद्री कछुए जाल से निकल जाते हैं और मछलियां फंस जाती हैं।
कैसे किया गांववालों और मछुआरों को जागरूक
डॉ. सुप्रजा ने आस-पास के ग्रमीण क्षेत्रों में घूम-घूम कर लोगों को बताया कि समुद्र में मछलियां तभी रहेंगी जब कछुए बचेंगे।
Wildlife SOS के डॉ. कार्तिक शंकर ने भी उनकी मदद की और स्लाइड्स के ज़रिए समझाया कि समुद्री कछुए मछलियों के प्रजनन के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड तैयार करते हैं।
युवाओं को भी नेक पहल से जोड़ा
डॉ. सुप्रजा नें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा के युवाओं को जोड़कर मंच Sea Turtle Protection Force (STPF) का निर्माण किया। बता दें कि ये फ़ोर्स भारत के पूर्वी समुद्री तट पर ऑलिव रिडली टर्टल्स के बचाव का काम करती है। इस टीम ने उसी साल समुद्री कछुए के नेस्टिंग सीज़न के दौरान पहली पैट्रोलिंग की और 35 घोंसले बचाए।
साथ ही डॉ. सुप्रजा ने अक्टूबर 2002 में TREE (Trust for Environment, Education, Conservation and Community Development) Foundation की स्थापना भी की।
700 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर चलाया बचाव अभियान
डॉ. सुप्रजा और उनकी टीम ने 700 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर बचाव अभियान चलाया है। 2011 तक, आंध्र प्रदेश के प्रकासम, विज़ियानगरम, एलुरू, स्रीकाकुलम, ओड़िशा के ऋषिकुल्या के लोग भी समुद्री कछुए को बचाने के लिए एकजुट हो गए औऱ मछुआरे अब ख़ुद समुद्री कछुए की एहमयित के बारे में समझने लगे थे।
उन्होंने कॉलेज छात्रों और यहां तक की IT Professionals को भी समुद्री कछुओ के बचाव अभियान से जोड़ा है।
डॉ.सुप्रजा का बयान
डॉ.सुप्रजा ने कहा “हम तमिलनाडु के कांचीपूरम तट से, विशाखापट्टनम और काकिनाडा को छोड़ पूरे आंध्र प्रदेश , ओड़िशा के गंजम ज़िले में काम करते हैं. हमारी संस्था इकलौती ऐसी संस्था है जिसमें स्थानीय निवासी भी हैं। हम सिर्फ़ समुद्री कछुओं के संरक्षण पर ही नहीं, अन्य जल जीवों के संरक्षण पर भी काम कर रहै हैं “
विभाग से भी मिला समर्थन
डॉ. सुप्रजा को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओड़िशा के वन विभाग के अधिकारियों, इंडियन कोस्ट गार्ड से भी समर्थन मिला।
“2006 में सी.के.श्रीधरन को तमिलनाडु का चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वॉर्डन बनाया गया। जिन्हें हमारा काम इतना अच्छा लगा कि उन्होंने हर गांव से दो लोगों को स्टाइपेन्ड और वन विभाग का आईडी कार्ड देने की घोषणा कर दी.”। दरहसल डॉ.सुप्रजा के काम में ये बहुत बड़ा टर्निंग पॉइंट था।
समुद्री कछुए से सीखा
सुप्रजा ने एक रिपोर्ट नें क़िस्सा शेयर किया था। उन्होने बताया था कि “एक बार अंडे से निकला एक छोटा सा कछुआ समुद्र की ओर जा रहा था औऱ वह एक आदमी के पैरों के निशान पर गिर गया और चप्पल में फंस गया। लेकिन उसने हिम्मत नही हारी और समुद्र के पास पहुंचा। सुप्रजा उसकी मदद को जाने वाली थी लेकिन कुछ पल बाद वो खुद से उठा और बड़े समुद्र के अंदर चला गया ।”
जिससे हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी गिव अप नही करना चाहिए। ऐसी ही एक कहानी हमे बचपन नेम भी सुनाई जाती थी कछुए और खरगोश की कहानी जिसमें धीरे-धीरे कछुआ हिम्मत न हारकर रेस जीत ही लेता है।