#उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून : उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए उठ रही भू कानून लागू करने की मांग | Nation One
पिछले कुछ अब तो सही सोशल मीडिया पर उत्तराखंड मांगे भू कानून कर रहा है। उत्तराखंड में भू कानून लागू करने की मांग लगातार उठाई जा रही हैं। ऐसा लग रहा है कि पहाड़ के लोग पिछले भू कानून में सुधार ला कर चैन की सांस लेंगे यही एक लड़ाई है उत्तराखंड के हक हकूक कि लड़ाई है या यू कहें कि अपने अधिकारों की लड़ाई है।
बता दे कि पिछले कुछ सालों ने बाहर के लोगों नहीं देवभूमि प्रखंड में आकर यहां की संस्कृति, खूबसूरती और सामाजिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। बाहर से लोग आते हैं और यहां जमीन खरीद कर फ्लैट्स, विला रिसॉर्ट इत्यादि बनाते हैं। हटाए दिन उत्तराखंड में आपराधिक गतिविधियां भी भरने लगी है जिन पर लगाम लगाना अब आवश्यक हो गया है। लगाम लगाने के लिए ही उत्तराखंड में भू कानून की मांग भरने लगी है।
दरअसल उत्तर प्रदेश अलग होने के 2 साल बाद 2002 में बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड आकर 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे, धीरे धीरे जमीन खरीदने की सीमा धरती चली गई 500 के बाद 2007 में 250 वर्ग मीटर कर दी गई। 2007 के कई वर्षों बाद सरकार द्वारा राज्य में अध्यादेश लाया गया जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन आ विधेयक पारित किया गया।
विधेयक में धारा 143 (क) धारा 154 (2) जोड़ दी गई, जिसका सीधा मतलब ये था कि पहाड़ों पर जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा ही समाप्त कर दी गई। लेकिन यहाँ सवाल ये उठता है कि जब 2000 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड की कुल 8,31,227 हैक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी जिसमे से 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से पहले की ये तीनों श्रेणियों की जोतो की संख्या 1,08,863 थी। इन परिवारों के नाम 4,02,22 हैक्टेयर कृषि भूमि के लगभग आधा भाग ?
ये आंकड़े एक रिपोर्ट के मुताबिक है तो वास्तविक आंकड़े और भी चिंतनीय होंगे। अब आप खुद ही सोचिए किस तरह उत्तराखंड राज्य में सिर्फ 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है और बची हुई 88 फीसदी कृषक आबादी भूमिहीन की श्रेणी में आ चुकी है।
उत्तराखंड में भू कानून की मांग इसलिए बढ़ रही है ताकि उत्तराखंड के लोग जायदा पैसों के लालच में कहीं बाहरी लोगों को यहां की जमीन न बेच दे। जम्मू कश्मीर हो या हिमाचल प्रदेश बाहरी राज्य का कोई भी वहां जमीन नहीं खरीद सकता, हिमाचल प्रदेश में 1972 में ही सख्त कानून बन गया था। अगर कोई किसी बाहर राज्य के लोगों को जमीन बेचता है तो उसे खुद भूमिहीन होना पड़ता है।
इस कानून में 2007 में धूमल सरकार द्वारा सुधार किया गया, जिसके मुताबिक बाहरी राज्य का कोई व्यक्ति अगर हिमाचल प्रदेश में पिछले 15 सालों से रह रहा हो तो ही वो राज्य में जमीन खरीदने का अधिकारी होगा लेकिन फिर अगली सरकार आई और इस नए कानून में और बदलाव कर दिया ताकि हिमाचल प्रदेश की विरासत संस्कृति को बचाया जा सके।
नई सरकार ने 15 साल की अवधि को 30 साल कर दिया। हालांकि कमर्शियल यूज के लिए बाहरी व्यक्ति को जमीन किराए पर लेने का अधिकार था पर बाद में वो भी खत्म कर दिया गया।
उत्तराखंड में भी भू कानून की मांग अब जोर पकड़ने लगी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में यहां बाहरी राज्यों के लोगो ने आकर बसेरा करना शुरू कर दिया फिर यही बाहरी लोग अपने पहचान वालों को लाने लगे, धीरे धीरे उत्तराखंड में गैर उत्तराखंडी लोगों की तादात बढ़ने लगी। इसी के साथ यहां अब क्राइम भी बढ़ने लगा है।