(आरटीआई) पत्नी को नहीं है पति के आयकर रिटर्न की जानकारी मांगने का अधिकार-सीआईसी | Nation One
केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है कि एक पत्नी को आरटीआई आवेदन दायर करके उसके पति द्वारा दाखिल आयकर रिटर्न की जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है। सूचना आयुक्त नीरज कुमार गुप्ता ने कहा कि आयकर विभाग के पास किसी व्यक्ति द्वारा आयकर रिटर्न दाखिल करना कोई सार्वजनिक गतिविधि नहीं है।
आयोग ने कहा कि, ”यह एक दायित्व की प्रकृति में आता है,जो एक नागरिक का अपने राज्य के प्रति करों का भुगतान करने के लिए होता है। इसलिए इस तरह की जानकारी आवेदक को किसी बड़े सार्वजनिक हित के अभाव में नहीं बताई जा सकती है।”
इस मामले में, एक पत्नी ने एक आरटीआई अर्जी दायर कर अपने पति के आयकर विवरण की मांग की थी। आयकर विभाग ने यह जानकारी देने से इंकार करते हुए कहा था कि किसी अन्य व्यक्ति की आयकर रिटर्न की जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) के तहत छूट प्राप्त सूचना है। आयुक्त ने ‘गिरीश रामचंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग (2013) 1 एससीसी 212’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया।
इस फैसले में कहा गया था कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी आयकर रिटर्न में बताए गए विवरण ”व्यक्तिगत जानकारी” हैं। जिसको आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) के खंड (जे) के तहत छूट प्राप्त है,बशर्ते जब तक कोई बड़ा सार्वजनिक हित शामिल न हो और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकरण इस बात से संतुष्ट न हो कि ऐसी जानकारी को बड़े सार्वजनिक हित में प्रकट करना जरूरी है।
आयोग ने ‘विजय प्रकाश बनाम भारत संघ ,एआईआर 2010 दिल्ली 7’ मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि, पति और पत्नी के बीच निजी विवाद के मामले में धारा 8 (1) (जे) के तहत दी गई छूट (सूचना को सार्वजनिक करने से) को प्राप्त बुनियादी सुरक्षा को तब तक खत्म या भंग नहीं किया जा सकता है ,जब तक कि याचिकाकर्ता यह बताने में सक्षम न हो कि इस तरह की जानकारी का खुलासा ‘सार्वजनिक हित’ में है।
आयोग ने ‘थर्ड पार्टी’ की परिभाषा का उल्लेख भी किया और कहा कि इस मामले में पति आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य से एक ‘थर्ड पार्टी’ है। ”आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एन) के तहत परिगत शब्दों से, यह स्पष्ट है कि सूचना मांगने वाले नागरिक के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को ‘थर्ड पार्टी’ माना जाएगा। इसलिए, श्री जी एच शरणप्पा ,आरटीआई आवेदक के अलावा एक अन्य व्यक्ति होने के नाते निश्चित रूप से ‘थर्ड पार्टी’ की परिभाषा में आता है।
इसके अलावा, सीपीआईओ भी इसे गोपनीय माना है और जानकारी का खुलासा करने से मना किया है। वहीं सीपीआईओ की तरफ से यह भी बताया गया था कि इस मामले में कोई सार्वजनिक हित नहीं है। इस आयोग को भी इस मामले में कोई ऐसा कोई सार्वजनिक हित नहीं मिला है,जिसके लिए सूचना को सार्वजनिक करना जरूरी हो।”
आयोग ने माना है कि इस मामले में, अपीलकर्ता यह साबित करने में सफल नहीं हुई है कि मांगी गई सूचना बड़े सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है। हालांकि, आयोग ने विभाग से कहा कि वह अपीलकर्ता को पिछले छह वर्षो की सीमित जानकारी यानि उसके पति की ‘सकल आय’ का संख्यात्मक आंकड़ा उपलब्ध करा दें ताकि वह उस जानकारी को रखरखाव के केस में अपना पक्ष रखने के लिए उपयोग कर सकें।
लखनऊ से शेखर खरे की रिपोर्ट