देहरादून | उत्तराखंड में सरकार चाहे किसी की भी रही हो हमेशा राज्य सरकार को राजस्व का रोना रोते शुरू से ही देखा गया है। बावजूद इसके फ़िज़ूल खर्चों में सभी सरकारों ने बड़ चढ़कर हिस्सा लिया हैं। हाल ही में गैरसैंण भराड़ीसैंण को राज्य सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया है जो किस हद तक जायज है ये तो जनता जनार्दन ही 2022 में बता पाएगी। लेकिन सरकार को यहां पर सत्र आयोजित करने के लिए बहुत ज़्यादा अतिरिक्त भार का वहन करना पड़ेगा, जो राज्य सरकार के राजकीय कोष से ही लिया जाएगा।
सबसे पहले समझना ये होगा कि आखिर क्यों उत्तराखंड को राज्य गठन के 20 वर्ष बाद भी कोई स्थाई राजधानी क्यों नहीं मिली, उपर से गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया जाता है इसको को भी अस्थाई राजधानी की श्रेणी में रखा गया है। वैसे गैरसैंण में सत्र आयोजित करने के लिए सरकार को किस अतिरिक्त भार का वहन करना पड़ेगा उस पर नज़र डालते है।
सबसे पहले सत्र आयोजित करने के लिए वहां पर सभी विभागों के ब्यौरे इकठ्ठा करने की जरूरत पड़ेगी। जिसके लिए देहरादून से भारी संख्या में फाइलों को गैरसैंण विधानसभा भवन में पहुंचाया जाएगा, जिनको देहरादून से ट्रांसपोर्ट के जरिए गैरसैंण भेजने में सरकार को करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ेंगे। फिर सत्र पूरा होने के बाद वापिस देहरादून लाने में भी उतना ही व्यय राज्य सरकार को करना पड़ेगा, जो एक हिसाब से फ़िज़ूल ही दिखाई देता हैं। इसके साथ साथ वहां पर अधिकारियों के रुकने खाने पीने देहरादून से आने जाने पर भी करोड़ों रुपए सरकार को खर्च करने पड़ेंगे।
अब बात मंत्रियों और विधायकों की कि जाएं तो उनके भी रहने खाने पीने आने जाने पर भी एक बड़ी रकम राज्य के राजस्व से खर्च करनी पड़ेगी साथ ही पत्रकार बंधुओं पर भी अच्छा खासा खर्च करना पड़ेगा। अब सवाल ये उठता है कि आखिर सरकार का ये दिखावा किस बात का है, जब पहले से ही देहरादून में विधानसभा मौजूद है सारे विभाग यहां है फिर गैरसैंण में सत्र कराने का क्या ओचित्य है।
ये सिर्फ़ राज्य सरकार जनता की गाढ़ी कमाई को अपने ऐश ओ आराम में खर्च करना जानती हैं, क्यों नहीं गैरसैंण को स्थाई राजधानी बना देते फिर विधानसभा भवन सचिवालय सब वहां पर बनाओ राज्य के लोग भी खुश होंगे। आपके खर्चों पर भी लगाम लगेंगी और राज्य आंदोनकारियों ने जो गैरसैंण को राजधानी बनाने का सपना जो देखा था वो भी पूरा हो जाएगा। इस तरह से आप राज्य की जनता के साथ छल कपट नहीं कर सकते।
जनता इस बात का जवाब चाहती हैं कि आखिर क्यों गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया है। इस वक्त राज्य में पूर्ण बहुमत की डबल इंजन वाली सरकार है फिर भी स्थाई राजधानी क्यों नहीं बना पाए। प्रदेश की सरकार सुधर जाओ नहीं तो आने वाले वक्त में कहीं राज्य की जनता आपको अस्थाई ना बना दे।
गैरसैंण को लेकर हमेशा राजनीति होती रही है और इसके पीछे कहीं ना कहीं बड़ी वजह पहाड़ के लोगो में अपना वर्चस्व कायम रखने को लेकर है। लेकिन अब पड़ाही भी इन नेताओ की बातों को आसानी से समझ गए है कि गैरसैंण को मात्र एक लॉलीपॉप के रूप में सरकार ने राज्य को दिया है जिसका कोई सरोकार नहीं है।
आखिर क्या डर राज्य सरकार को है कि वो गैरसैंण को स्थाई राजधानी नहीं बना पाई। जबकि वोट मांगते समय जनता के सामने इसको राजधानी बनाने की दुहाई देती रही। वैसे इस बात को नहीं नकारा जा सकता सरकार चाहे कोई भी ही देहरादून को ही स्थाई राजधानी बनाने के पक्ष में रही है।
इस बात का अंदाज़ा आप लगा सकते है सत्र के बाद कोई भी मंत्री या विधायक ऐसा है जो गैरसैंण गया हो और अपनी विधानसभा में बैठा हो। वैसे विधानसभा भी अपने आप को कोसती होंगी की आखिर उसकी क्या गलती है जो कोई सदस्य वहां दर्शन देने सत्र के बाद नहीं जाता।
खैर भला हो यहां की सभी सरकारों का जो जनता के पैसों को फिजूल में खर्च करने में लगी है एक बात तो साफ है ऐसे सत्रो के आयोजन से राज्य के राजस्व को भारी नुकसान होता है जिसे सरकार और विपक्ष भली भांति जानता है लेकिन कहेगा कुछ नहीं।
ये सोचना होगा सभी सरकारों को कि आपसे बहुत उम्मीद होती है राज्य के विकास के लिए तो आप नाटक छोड़ो और राज्य के विकास पर ध्यान दो और सत्र मात्र करने से गैरसैंण राजधानी नहीं बन जाती। राज्य के राजस्व को राज्य के हित्त में खर्च करो ना कि अपने ऐश ओ आराम में। बंद करो ये स्थाई और अस्थाई का नाटक और राज्य के हित के लिए स्वम स्थाई बन जाओ।
देहरादून से आदिल पाशा की रिपोर्ट