उत्तराखंड राजनीति : हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे | Nation One
देहरादून। उत्तराखंड में आजकल एक शेर बड़ा सटीक बैठता है हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे। सूबे में जहां एक तरफ जनता अपने प्रतिनिधि के कार्यों से खुश नहीं दिखाई दे रही है, वहीं प्रतिनिधियों का अपने अधिकारियों पर उनकी बातो का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। जिससे एक बात का साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अधिकारियों को किसी ने तो इतनी पॉवर दी हुई है कि वो अपने विवेक से जो चाहे कर सकते है बाकी किस मंत्री या विधायक की सुननी है ये वो खुद तय करेंगे।
वैसे तो प्रदेश बनने के बाद किसी सरकार में विधायकों और मंत्रियों की बात ना मानी गई हो ऐसा कम ही देखने को मिला है, लेकिन वर्तमान की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में वो सब देखने को मिल रहा है जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
सूबे के दो कद्दावर मंत्री जनता और मीडिया के सामने इस बात का दुखड़ा रोते दिखाई दे रहे है कि सरकार के जिम्मेदार अधिकारी उनकी बातों को संजीदगी से नहीं ले रहे है और हद तो तब हो गई जब एक सत्ताधारी विधायक को जिले के डी एम ने उनकी मानसिक स्थिति पर ही सवाल खड़ा कर दिया।
आखिर प्रदेश की जनता जब किसी पार्टी को जनादेश देती है तो उनके बहुत सपने उस सरकार से जुड़ जाते है लेकिन इस प्रदेश में जनता के सपने पूरे होने तो दूर की बात है जनप्रतिनिधि ही अपनी बातो को नहीं मनवा पा रहे है। इसको देखते हुए ऐसा ही लगता है जनता के ये नेता जनता को तो डुबाएगे ही साथ ही खुद भी डूब जाएंगे।
ये बात सिर्फ सत्ता पक्ष के लिए नहीं है विपक्ष भी यदि सही ढंग से काम नहीं करेगा तो जनता को तो सब जानते है वो कुछ भी कर सकती है। वैसे आज की जनता सब जानती है। यू तो प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की ही सरकार रही है लेकिन कभी ऐसे हालात नहीं पैदा हुए थे अब प्रश्न ये उठता है कि क्या सूबे का शासक इतना कमजोर है कि वो उच्च अधिकारियों की नाक में नकेल डालने में असमर्थ है या फिर वो जानबूझकर अधिकारियों से ऐसा करवा रहा है।
एक वक़्त जब प्रदेश कि बागडोर भुवन चंद्र खंडूरी के हाथो में थी तो अधिकारियों कि हिम्मत नहीं होती थी उनके सामने सर उठाने की। उनके शासनकाल में कभी भी लंबे समय तक किसी भी फाइल को दबाया नहीं जाता था और तत्काल कार्यवाही की जाती थी वहीं दूसरी तरफ हरीश रावत सरकार में भी अधिकारी बेलगाम नहीं थे, हरीश रावत जानते थे उनकी नब्ज़ को कैसे दबाया जा सकता है। लेकिन आज वो सरकार सूबे में नहीं दिखती हैं जिसके रोब से अधिकारियों के पसीने छूट जाए। अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो सरकार को हर तरह से नौकरशाह ही चलाएंगे।
जनता तो इस बात का जवाब चाहती है नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब आपको विपक्ष में बैठना पड़ जाए और आप आज के समय की दुहाई देने में भी हिचकिचाए। वैसे इस प्रदेश का दुर्भाग्य ये रहा है यहां के अधिकारी किसी प्रतिनिधि की बातो पर अमल कम करते है अब इसको शासक की कमजोरी कहे या नौकरशाही का दबदबा ये तो सरकार ही जाने।
लेकिन अगर राज्य में सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में जनता भी जब नेता किसी गांवो के दौरे पर वोट के लिए जाएंगे भले ही जनता नेता जी के सामने जी हुजूरी करते नज़र आए लेकिन मन ही मन में जनता ये ज़रूर कहेंगी पता है क्या कहेगी हम तो डूबेंगे सरकार तुम को भी ले डूबेंगे।
देहरादून से आदिल पाशा की रिपोर्ट