पत्रकारों के संरक्षण के लिए कानून बनें – पवन कुमार, भा.म.संघ | Nation One
पत्रकारों के संरक्षण के लिए कानून बनना चाहिए, अन्यथा आये दिन पत्रकारों के साथ जो घटनाएं हो रही हैं उससे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कमजोर हो जाएगा। यह विचार भारतीय मजदूर संघ के संगठन मंत्री पवन कुमार ने “उत्त्तराखण्ड मीडिया वेबिनार” में मुख्य अतिथि के रूप में कही।
वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया द्वारा कल 26 जुलाई को उत्त्तराखण्ड के पत्रकारों के लिए मीडिया वेबिनार का आयोजन किया गया था। पवन कुमार ने कहा पत्रकार संगठित नही हैं, वे निजी स्वार्थ, अहंकार और राजनीतिक विद्वेष को छोड़ दें तो उनकी समस्या सुनने वाले भी होंगे और समस्स्या हल करने वाले भी होंगे।
उन्होंने कहा दूसरे प्रेस आयोग आने के बाद प्रेस में आमूल परिवर्तन हुए हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, ऑन लाइन मीडिया, सोशल मीडिया जैसे कितने ही स्वरूप आ गए है। इसलिए पत्रकारों के मान-सम्मान और गरिमा को बचाने के लिए और पत्रकारों की सेवा शर्तों, वेतन, पेंशन व सामाजिक सुरक्षा के लिए शीघ्र ही कानून बनना जरूरी है।
इस अवसर पर अपने बीज वक्तव्य में वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय ने संगोष्ठी के आयोजन पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। अतिथि वक्ता के रूप में वरिष्ठ मीडियाकर्मी पार्थसारथि थपलियाल ने कोरोना काल मे पत्रकारों द्वारा दी गई सेवाओं का उल्लेख किया और उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति का हवाला भी दिया।
उन्होंने कहा कि पत्रकार बुद्धिजीवी हैं उनके संरक्षण की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। इस वेबिनार में देवभूमि पत्रकार यूनियन, उत्त्तराखण्ड वेब मीडिया एसोसिएशन, पछवादून प्रेस क्लब, वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया सहित अनेक मीडिया संगठनों व स्वतंत्र पत्रकारों ने भाग लिया।
वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के प्रदेश महासचिव वी डी शर्मा ने समाचार पत्रों की सूची बद्धता, प्रेस मान्यता, पत्रकार कल्याण कोष, पेंशन, और विज्ञापन देने में सरकार की नीति पर धारदार ढंग से अपना विचार रखा। प्रांतीय महामंत्री आलोक शर्मा ने अपना रोष व्यक्त किया कि दूसरों के समाचार देने वालों के समाचार कौन देगा? हाल के दिनों में पत्रकारों पर हुई जघन्य घटनाओं का उन्होंने जिक्र किया।
नैनीताल से वरिष्ठ पत्रकार आँचल पंत ने पत्रकारों पर समय समय पर हो रहे अत्याचारों के समय दूसरे साथियों का उपयुक्त सहयोग नही मिलता। उन्होंने प्रेस मान्यता विज्ञापन नीति और वेब मीडिया की मान्यता पर भी अपने विचार रखे।
डी.डी मित्तल ने पत्रकारों के अहंकार की बात को एकता के मार्ग में बाधक बताया। उनका विचार था कि राज्यों में पत्र सूचना कार्यालय होने चाहिए। सरकार की विज्ञापन नीति को उन्होंने प्रेस विरोधी बताया जिसमे लघु और मझोले समाचारपत्रों को किसी प्रकार का लाभ नही है।
दीपक धीमान ने कहा कोविड के दौरान पत्रकारों ने अपनी जान को हथेली पर रखकर आम जनता तक सरकार की बात पहुंचाई, पत्रकारों की आर्थिक मजबूरी को किसी ने नही समझा। नैनीताल से सुमित जोशी ने यह मुद्दा उठाया कि प्रशासन की लापरवाही को उजागर करने पर उन पर किसी न किसी तरह से दवाब बनाया जाता है। पत्रकार असुरक्षा में जीते हैं।
पौड़ी से आशीष नेगी का सुझाव था कि वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया को चाहिए कि एक केंद्रीय वेब पोर्टल बनाये ताकि उसके माध्यम से सभी पत्रकार जुड़ सकें। ऋषिकेश से पत्रकार देवेंद्र कुमार ने सुझाव दिया कि वेब मीडिया को भी मान्यता मिले। मसूरी से संतोष रयाल का सुझाव था कि सकारात्मक पत्रकारिता पर भी पत्रकारों को ध्यान देना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र सिंह तोमर ने विस्तार से चर्चा की की पत्रकारों के सामने किस किस तरह की समस्याएं आ रही है। अधिमान्य पत्रकार संबधी प्रसंग में उन्होंने नियम का उल्लेख भी किया, लेकिन व्यवस्थाएं अपनी मन मानी कर देती हैं।
वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव, नरेंद्र भंडारी ने सभी समस्याओं का निदान पत्रकारों की एक जुटता को बताया। उन्होंने बताया पत्रकारों की विभिन्न उचित मांगों के समर्थन में 27 जुलाई को श्रम मंत्रालय के सामने दिल्ली इकाई के पत्रकार सदस्य प्रदर्शन करेंगे। साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री और गृह मंत्री को भी उनसे संबंधित मांगों के ज्ञापन पत्र देंगे।
उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में लघु और मझोले समाचार पत्रों के प्रमुखों के साथ एक बैठक होने वाली है, उसमें भी कुछ मुद्दे आ सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने ऑन लाइन मीडिया को मान्यता का मामला भी उठाया है।
वर्किंग जर्नलिस्ट के कार्यक्रमों में 25 अगस्त “डिजिटल मीडिया डे” के अवसर पर विशिष्ट सेवाओं के लिए पत्रकारों को सम्मानित करने का कार्यक्रम है। उनके वक्तव्य की मुख्य बास्त यह थी कि ऐसा लग रहा है पत्रकारों की आवाज़ या तो अनसुनी की जा रही है या दबाने के प्रयास किये जा रहे हैं। पत्रकार अपने अधिकारों के लिए जब तक एकजुट नही होंगे तब तक शोषण होता रहेगा। बेहतर है राष्ट्रीय स्तर पर सभी पत्रकार संगठन एक हो जाएं।
वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी जिनका स्वास्थ्य ठीक नही था, ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पत्रकारों की एकता को उनकी भलाई का बीज मंत्र बताया। महिला पत्रकारों, ऑन लाइन मीडिया और अन्य सभी बातों का उन्होंने अनुमोदन किया।
वेब संगोष्ठी का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार सुनील गुप्ता ने सभी से संगठित होने की अपील की और आभार व्यक्त किया। इस गोष्ठी की सबसे बड़ी बात यह रही कि 29-30 वक्ताओं ने अपनी बात रखी सभी प्रसन्न भी थे।
अन्य वक्ता प्रतिभागी थे- आदिल पाशा, दीवान नगरकोटी, ए एल द्विवेदी, अजय काम्बोज, भूपेन्द्र नेगी, वर्षा ठाकुर, संजय मल, राजेन्द्र सिंह बिष्ट, प्रमोद, मनोज रयाल, नरेंद्र राठोड़, सुनील जोशी, रजनीश ध्यानी, संजय अग्रवाल, चंद्रा राम राजगुरु, अशोक धवन, सुल्तान तोमर, हर्षवर्धन, योगेश वाजपेयी ,गणेश रावत, आशुतोष नेगी, रंजीत सिंह धारीवाल, एच सी सेठी, और बॉबी शर्मा आदि। सभी ने एक स्वर में पत्रकारों की एकता का समर्थन किया।