कोरोना की महामारी के बीच पूरे देश में लॉक डाउन है। ऐसे में कई मजदूर भूख की तड़प से अपने घरों की ओर मीलों सफर कर रहे हैं, तो कहीं गरीब खाने के लिए आंसू बहा रहे हैं। इन सबके बीच सरकारी मदद मात्र ऊंट के मुंह में जीरा है। भूख की तड़प से जिंदगी की जंग लड़ते यह लोग यूं ही मर जाना चाहते हैं। खंडवा से कुछ ऐसे ही तस्वीर सामने आई है जिसमें गरीब लोग लॉक डाउन के बाद खाना नहीं मिलने से परेशान नजर आ रहे हैं। इनका कहना है कि कोरोना वायरस से तो बाद में मौत होगी पर उन्हें लगता है कि भूख से वे पहले ही मर जाएंगे।
आंखों में आंसू और अपने रुंधे गले से अपनी भूख के लिए गिड़गिड़ाता यह बुजुर्ग खंडवा के लोको शेड का रहने वाला है पिछले 2 दिनों से भूख की तड़पने ने इसकी आंखों में आंसू ला दिए। जब इस बुजुर्ग को पता चला कि जिला प्रशासन ने गरीबों के लिए खाने का इंतजाम किया है तो वह दौड़ा दौड़ा प्रशासन के राहत कैंप के पास पहुंचाया लेकिन इसे यहां पर एक वक्त का खाना तो देने की बात कही गई पर आगे किस तरह से खाना का इंतेज़ाम होगा इसका संकट इसकी नम आंखों में सा दिखाई देता है। इस बुजुर्ग में रोते हुए कहा कि बीमारी से तो बाद में मौत होगी उससे पहले शायद भूख की तड़प से उसकी जान चली जाए।
यह तो एक बुजुर्ग की दास्तां थी अब मिलिए इस दुःखियारी महिला से जो अपनी गोद में एक मासूम को लेकर अपने घर से दूर इस राहत के में चली आई इसकी भी पीड़ा वही है यह भी चाहती है कि इस लॉकडाउन के दौरान उसे कुछ राशन मिल जाए ताकि वह अपनी और अपने बच्चों की भूख शांत कर सके
यहां मौजूद पत्रकारों ने शासन से जब मदद की बात कही तो टका सा जवाब मिल गया प्रशासन का कहना था कि 1000 भोजन पैकेट बनाकर तो हमने दे दिए हैं लेकिन जरूरत का खाद्यान्न लेने के लिए इन्हें सरकारी नंबर पर पहले फोन करना पड़ेगा उसके बाद ही इनकी मदद मिलेगी अब यह सवाल उठता है कि जो व्यक्ति भूख से लड़ रहा है खुद फटहाल है वाह इन सरकारी नंबरों पर कैसे मदद मांगेगा। जब वह मदद मांगने खुद प्रशासन की शरण में आया है तो आगे बढ़ कर प्रशासन को भी मदद करनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं नजर आ रहा है।
इस पूरे दृश्य को देखकर मौके पर मौजूद पत्रकारों ने समाजसेवियों से सामान एकत्रित कर इस बुजुर्ग और इन जैसे कहीं लोगों की मदद की ताकि कोरोना से लड़ाई की इस मुहिम में यह लोग अपने घरों में रहकर अपनी भूख को भी शांत कर सके और इस बीमारी से भी उनका बचाव हो सके।
खण्डवा, मध्यप्रदेश से विजय तीर्थानी की रिपोर्ट