
राजनीति का ये अजब खेल, क्या चल पाएगी गठबंधन सरकार…
राजनीति में कितनी जल्दी तस्वीर और विचारधारा बदलती है अगर ये जानना है तो महाराष्ट्र में हुए चुनाव को समझिए जी हां जो शिवसेना हमेशा कांग्रेस की जातिवाद पर विचारधारा की बात करती थी और खुद को हिन्दुओं की हिमायती पार्टी कहती थी । आज पल भर में वो उसी कांग्रेस से आज हाथ मिला बैठी । वहीं इस चुनाव से ये भी सिखा जा सकता है कि राजनीति में कितने जल्दी बयान बदले।
अब जरा इतिहास के पन्नो को पलटकर शिवसेना का इतिहास समझने की कोशिस करते हैं। शिवसेना की स्थापना बाला साहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को की थी। जो हिदुत्व के बिसात पर रखी गई थी और कांग्रेस की विचारधारा के विऱोध में खड़ी हुई थी। शिवसेना के गठन के समय बालासाहेब ठाकरे ने नारा दिया था।
” अंशी टके समाजकरण, वीस टके राजकरण”
यानि 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 प्रतिशत राजनीति
1970 के शुरुआती दिनों में पार्टी को काफी लोकप्रियता मिली इस दौरान दूसरे राज्यों से आये लोगों द्वारा दक्षिण भारतीय लोगों पर काफी हमले हुए इस पर पार्टी ने हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ना शुरू किया।
पार्टी ने भाजपा के साथ 1989 में गठबंधन किया जो इस विधानसभा चुनाव तक जारी रहा। महाराष्ट्र के बाहर केंद्र की सत्ता में भी शिवसेना बीजेपी के साथ रही।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में शिवसेना कोटे से 2 कैबिनेट और एक राज्य मंत्री रहे, लेकिन लेबर रिफॉर्म, मंदिर और 370 जैसे मसलों पर शिवसेना बीजेपी सरकार की आलोचना करती रही। वहीं बालसाहबे ठाकरे को कट्टर हिन्दू नेता कहते थे जिनके बयान अक्सर सुर्खियों में रहते थे ।
इसलिए इन्हे हिन्दु सम्राट भी कहा जाता था, एक दौर था जब वे सोनिया का खूब विरोध करते थे और उनके पीएम ना बनान के कट्टर विऱोधी थे ।
पर इन के बेटे उद्धव ठाकरे सत्ता की इस मलाई में ऐसे पागल हो गए कि अपने पिता बालठाकरे की विचारधारा को ही भूल गए ।
आपको बता दे महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे अब महाराष्ट्र के सीएम होगें। वहीं फ्लोर टेस्ट से पहले बीजेपी सीएम पद के उम्मीदवार देवेन्द्र फणडवीस ने भी अपना इस्तीफा राज्यपाल को सोंप दिया है।
तो ये रहीं महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की ऐसी कहानी जो वक्त के साथ बदलती रही ।
लेकिन अब सबसे बडा सवाल यहीं है कि तीन दलो की ये सरकार आखिर चलेगी कितनी चलो ये प्रश्न हम वक्त पर ही छोड़ते हैं पर एक बड़ा सवाल महाराष्ट्र का ये चुनाव ये भी छोड़ता है कि आखिर बीजेपी अपने सत्ता के हनक में कुछ भी करेगी तो लोकतंत्र का क्या होगा।
खैर इस सवाल का जवाब भी आप खुद से पूछिए…