
कंधे में मासूम की लाश को लेकर इसलिए अस्पताल में दौड़ते रहा पिता, जानकर निकल जाएंगे आंसू…
लखीमपुर खीरी: सरकार ने न जाने कितनी स्वास्थ्य सेवाएं आम जनता के लिए निकल रखीं है। लेकिन पता नहीं क्यों इसका लाभ आम जनता को मिल ही नहीं पा रहा है। आए दिन स्वास्थ्य सेवाएं की बदहाली का रोना रोते हुए अस्पताल अपने आप को दर किनारे कर लेता है। स्वास्थ्य का अधिकार जनता का सबसे पहला अधिकार होता है लेकिन देश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रोजाना हजारों लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वहीं सरकारी अस्पताल का तो भगवान ही मालिक है।
दो साल के मासूम को गवानी पड़ी अपनी जान…
एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाएं के आभाव के कारण दो साल के मासूम को अपनी जान गवानी पड़ी। वहीं एक पिता को अपने मासूम बेटे की लाश को कंधे पर लेकर अस्पताल में डेथ सर्टिफिकेट की गुहार लगाता रहा। लेकिन आंखों में आंसू और कंधे पर बेटे की लाश का बोझ देखकर भी संवेदनहीन व्यवस्था का कलेजा नहीं पिघला। एक लाचार पिता की ये तस्वीर जिसमें उसने बेटे के शव को कंधे पर रखा हुआ है, जिसने भी देखी उसका दिल पसीजा। लेकिन अस्पताल को कोई फर्क नहीं पड़ा।
अस्पताल स्टाफ से मदद मांगता रहा लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की…
दरअसल, थाना क्षेत्र नीमगांव के ग्राम रमुआपुर निवासी दिनेश कुमार के दो वर्ष के पुत्र दिव्यांशु को तेज बुखार के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान दिव्यांशु की मौत हो गई। बच्चे की मौत से दिनेश सदमे में चले गए। जब बेटे के शव को ले जाने की बारी आई तो उसे बताया गया कि डेथ सर्टिफिकेट बनवाना जरूरी है। बिना डेथ सर्टिफिकेट के अस्पताल से छुट्टी नहीं मिलेगी। बेटे की मौत के गम से टूटे दिनेश यह सुनकर परेशान हो गए। दिनेश डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए अस्पताल में दोड़ता रहा। वह लोगों और अस्पताल स्टाफ से मदद मांगता रहा लेकिन किसी ने उसकी मदद के लिए हाथ किसी ने नहीं बढ़ाया। काफी कठोर परिश्रम के बाद कहीं जाकर बेटे का डेथ सर्टिफिकेट बन पाया और वह बेटे के शव को घर ले जा सका।
दिनेश का कहना है कि इलाज अगर ठीक से होता तो उसका बेटा जिन्दा होता…
इस दौरान अस्पताल में किसी ने दिनेश की तस्वीर मोबाइल में कैद कर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। उधर दिनेश का कहना है कि वह बेटे को सुबह आठ बजे के करीब अस्पताल लेकर पहुंचे थे, जहां इमरजेंसी में उसे भर्ती करवाया गया था। दिनेश का कहना है कि इलाज अगर ठीक से होता तो उसका बेटा जिन्दा होता। इतना ही नहीं उसका आरोप है कि उसे दवाई और मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बहुत दौड़ाया गया। अब आप खुद ही सोच सकते है इस मजबूर बाप का दर्द। और दिन बा दिन बिगड़ती जा रही स्वास्थ्य सेवाओं का रोना।
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