गुरुवार को 10 विधानसभा और चार संसदीय सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए झटके से कम नहीं हैं। कर्नाटक में भाजपा बहुमत और सत्ता से चूक गई। उससे पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव परेशान करने वाले थे। गुरुवार को आए नतीजों में भी भाजपा तीन संसदीय और विधानसभा सीटें गंवा चुकी है। खासकर कैराना की हार ने विपक्षी एकता को बल दे दिया है।
हालांकि भाजपा अभी भी यह मानने को तैयार नहीं है कि प्रभावी विपक्षी एकजुटता आकार ले पाएगी, लेकिन यह भी स्पष्ट हो गया है कि आगामी लड़ाई के लिए विशेष प्रबंध करना होगा। गुरुवार को भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई। सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व अपने समर्थकों में वोटिंग को लेकर उत्साह की कमी से चिंतित है।
यही कारण है पिछले साल राजस्थान के संसदीय उपचुनाव में कुछ ऐसे बूथ भी दिखे थे जहां भाजपा को एक भी वोट नहीं मिला था। शाह नीचे के स्तर पर इन कमजोरियों को लेकर खासे नाराज बताए जा रहे हैं। यूं तो जमीन तक पहुंचने के लिए भाजपा ने पहले ही केंद्र सरकार की सात योजनाओं को घर-घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। इसी बहाने उन 22 करोड़ परिवारों के बीच भाजपा के लिए सद्भावना बढ़ाई जाएगी जो वंचित हैं वहीं अपने समर्थकों को भी समझाने की कोशिश होगी कि सरकार की नजरों से वह ओझल नहीं हुए हैं। कार्यकर्ताओं से भी संवाद बढ़ेगा और कोशिश होगी कि जनाधार के साथ-साथ वोट फीसद में बड़ी छलांग लगाई जाए।
पालघर और गोंदिया-भंडारा ने दिए पार्टी को नए सबक
महाराष्ट्र की दो लोकसभा सीटों के उप चुनाव में एक पर मिली जीत के कारण यहां उत्तर प्रदेश जैसी किरकिरी होने से भले बच गई हो, लेकिन ये चुनाव 2019 के लिए भाजपा को कई नए सबक सिखा गए हैं। भाजपा ने मुंबई से सटी पालघर लोकसभा सीट 29,572 मतों से जीती और विदर्भ की भंडारा-गोंदिया सीट करीब 40,000 मतों से हार गई। भंडारा- गोंदिया राकांपा के दिग्गज नेता प्रफुल पटेल की परंपरागत सीट मानी जाती है।