अब ठेली माफिया पर चलेगा पुलिस का डंडा

देहरादून में ऐसे ठेली माफिया सक्रिय हैं, जिनके पास सैकड़ों की संख्या में अनाधिकृत ठेलियां हैं और वह इनका संचालन किराए पर देकर कर रहे हैं। इससे ये ठेली माफिया घर बैठे खुद तो रोजाना की दर पर मोटा किराया वसूल कर रहे हैं और शहरवासियों के गले मुफ्त में जाम की समस्या आ पड़ी है। क्योंकि ठेलियों के अनाधिकृत होने से इनका संचालन किसी भी सड़क पर मनमर्जी से किया जा रहा है। यह बात यातायात पुलिस की जांच में सामने आया है और ऐसे आठ ठेली माफिया चिह्नित किए गए हैं। सभी के नाम कार्रवाई के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को भेजे गए हैं।

पुलिस अधीक्षक यातायात धीरेंद्र गुंज्याल के मुताबिक ठेलियों के सत्यापन की जिम्मेदारी हेड कॉन्स्टेबल मकान सिंह को सौंपी गई थी। जिसमें पता चला कि नगर निगम से जारी लाइसेंस प्राप्त ठेलियों के इतर भी हजारों की संख्या में ठेलियों का अनाधिकृत संचालन किया जा रहा है। इसमें आठ ऐसे लोगों का पता चला है, जिनमें प्रत्येक के पास बड़ी संख्या में अनाधिकृत ठेलियां है और वे किराए पर इनका संचालन करा रहे हैं।

हालांकि इनमें दो नाम ऐसे हैं, जिनकी पूरी महचान होनी अभी बाकी है और इनके अभी बोलचाल के नाम दर्ज किए गए हैं। अधीक्षक याताताय गुंज्याल ने बताया कि पुलिस एक्ट के तहत इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई जाएगी और नगर निगम को भी अपने स्तर पर कार्रवाई के लिए कहा जाएगा। रवेल चंद गुंभर निवासी तिलक रोड, अजय कुमार निवासी मोती बाजार), कोहली तिलक रोड नाले के सामने, सरदार मच्छी बाजार, याकूब निवासी मंडी बिंदाल पुल, राजू निवासी कुम्हार मंडी, बंटू उर्फ छोटे मियां निवासी मोतीबाजार।

ठेलियों के बनेंगे जोन, रंगों से होगी पहचान

पुलिस अधीक्षक यातायात धीरेंद्र गुंज्याल के अनुसार नगर निगम के प्रयास से शहर में ठेलियों का संचालन नियोजित किया जाएगा। इसके लिए एक प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसमें ठेलियों के लिए जीरो जोन (संचालन के लिए प्रतिबंधित) व ग्रीन जोन (संचालन के लिए अधिकृत) बनाए गए हैं।

साथ ही हर जोन के हिसाब से ठेलियों पर कलर कोडिंग भी जाएगी। ताकि स्पष्ट हो सके कि ठेली रंग के अनुसार अपने जोन में है या नहीं। यह भी संस्तुति की गई है कि ठेली का लाइसेंस संबंधित क्षेत्र के थाने से सत्यापन के बाद ही जारी किया जाए। वहीं, विभिन्न अधिकृत क्षेत्रों में ठेलियों की संख्या भी नियंत्रित की जाएगी। जिनकी संख्या अलग-अलग क्षेत्र में पांच से 20 तक हो सकती है। जबकि अन्य अछूते क्षेत्रों में जनता की जरूरत के मुताबिक की जाएगी।

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