Uttarakhand : उत्तराखंड, जो कि देश के प्रमुख टाइगर स्टेट्स में से एक है, वहां बाघों की घटती संख्या एक गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है।
इस साल के पहले छह महीनों में ही राज्य में 7 बाघों की मौत दर्ज की गई है, जिसने वन्यजीव संरक्षण से जुड़े विभागों और विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है। इस स्थिति ने न सिर्फ सरकार को चिंता में डाल दिया है, बल्कि जैव विविधता को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
Uttarakhand : बाघों की मौत के पीछे की वजहें
उत्तराखंड में बाघों की मौत के पीछे कई वजहें सामने आ रही हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवजनित गतिविधियां हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों की रहन-सहन की जगहें लगातार कम होती जा रही हैं, जिससे वे मानव बस्तियों की ओर खिंच रहे हैं। इससे मानव-पशु संघर्ष बढ़ा है और कई बार इन संघर्षों में बाघों को जान गंवानी पड़ी है।
- वन क्षेत्रों में अतिक्रमण:
वन क्षेत्रों में तेजी से हो रहे अतिक्रमण ने बाघों के प्राकृतिक आवास को सीमित कर दिया है। निर्माण कार्य, पर्यटन गतिविधियां और कृषि विस्तार से बाघों की आज़ादी पर असर पड़ा है। - शिकार और तस्करी:
वन विभाग की तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ क्षेत्रों में अब भी अवैध शिकार और अंगों की तस्करी जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। बाघों की खाल और हड्डियों की अंतरराष्ट्रीय मांग भी इस समस्या को बढ़ा रही है। - आपसी संघर्ष:
बाघों की संख्या में असमान वृद्धि के कारण उनके बीच इलाकाई संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। एक ही क्षेत्र में कई बाघों का बसना आपसी लड़ाई का कारण बनता है, जिससे कई बार जान का नुकसान होता है। - सड़क दुर्घटनाएं और करंट लगना:
कई बार बाघ जंगल से बाहर निकलते हुए सड़कों पर आ जाते हैं और वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। इसके अलावा, कुछ मामलों में खेतों की सुरक्षा के लिए बिछाए गए बिजली के तार भी जानलेवा साबित हुए हैं।
Uttarakhand : आंकड़े और वन विभाग की चिंता
उत्तराखंड में पिछले वर्षों की तुलना में इस बार बाघों की मौत के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी नेशनल पार्क और तराई पूर्वी तथा पश्चिमी वन प्रभागों से बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं। वन विभाग ने इनमें से कुछ मौतों को ‘प्राकृतिक’ बताया है, जबकि कई पर अभी भी जांच जारी है।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन मौतों की जांच की जा रही है और जिन मामलों में मानव जनित हस्तक्षेप की आशंका है, वहां सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, विभाग टाइगर मूवमेंट पर नजर रखने के लिए कैमरा ट्रैपिंग और ड्रोन सर्विलांस जैसी आधुनिक तकनीकों का भी सहारा ले रहा है।
Uttarakhand : विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों की मौत सिर्फ एक पर्यावरणीय संकट नहीं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की गंभीर चेतावनी है। उनका कहना है कि जब शिकार की उपलब्धता घटती है या आवास छोटा होता है, तो बाघ मजबूरन मानव बस्तियों की ओर रुख करते हैं। इससे न केवल उनकी जान खतरे में पड़ती है बल्कि ग्रामीण इलाकों में डर और असंतोष भी बढ़ता है।
राज्य सरकार और वन विभाग को मिलकर बाघ संरक्षण के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इनमें शामिल हो सकते हैं:
- वन्यजीव गलियारों को संरक्षित करना और उनका विस्तार करना।
- बाघों की निगरानी के लिए GPS कॉलर तकनीक को बढ़ावा देना।
- मानव-बाघ संघर्ष वाले क्षेत्रों में जनजागरूकता अभियान चलाना।
- अवैध शिकार पर सख्ती और तस्करी नेटवर्क को तोड़ने के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाना।
उत्तराखंड में बाघों की मौतें सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं हैं, बल्कि यह एक गंभीर चेतावनी है कि यदि समय रहते हम नहीं चेते तो आने वाले वर्षों में बाघ केवल किताबों और डॉक्यूमेंट्री तक ही सीमित रह जाएंगे। जरूरत है एकजुट होकर काम करने की, ताकि इस जंगल के राजा की दहाड़ें फिर से जंगलों में गूंज सकें।
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