चकराता: वक्त के साथ-साथ अब हमारे समाज के लोगों की सोच भी धीरे-धीरे बदल रही है। जहां समाज में आज भी कई लोग अपनी बेटियों को सिर्फ बोझ समझते हैं तो वही दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वक्त के साथ-साथ अपनी इस सोच में भी बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही राजधानी देहरादून के चकराता में देखने को मिला, जहां एक बेटी ने समाज की कुरीतियों को तोड़कर अपने पिता की चिता को मुखाग्रि दी और इस समाज के लिए एक मिशाल बनी।
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हमारी संस्कृति एंव परम्मपराओं के आधार पर तो आपने देखा ही होगा कि इस समाज में पिता को मुखाग्रि देने का अधिकार सिर्फ एक बेटे को होता है। लेकिन जब इस बेटी ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी तो हर किसी की आंखें भर आयीं। समाज की करूतियों को तोड़कर उसने बेटा बनकर हर फर्ज को पूरा किया। आपको बता दें कि चकराता कैंट के सप्लाई क्षेत्र में रेस्टोरेंट व किराने की दुकान चलाने वाले दिलबहादुर थापा काफी समय से बीमार चल रहे थे। उनका उपचार महंत इंदिरेश अस्पताल में चल रहा था। एक माह तक चले उपचार के बाद शनिवार देर शाम उनका निधन हो गया।
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दिलबहादुर थापा के कोई पुत्र नहीं था। उनके घर चार बेटियों ज्वाला, प्रतिभा, प्रतीक्षा व प्राची ने जन्म लिया। उन्होंने चारों बेटियों को बेटों की तरह पाला। पिता के निधन होने पर बेटियों ने उनका अंतिम संस्कार करने की बात कही। इतना ही नहीं पिता की अर्थी को कंधा देकर शमशान घाट तक भी बेटियां ही ले गईं। कैंट स्थित मुक्ति धाम में जब दूसरे नंबर की बेटी प्रतिभा ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी तो उस वक्त अंतिम यात्रा में शामिल लोगों की आंखों में आंसू थे।